पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४१४

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३०८ पदुमावति । १३ । राजा-गजपति-संबाद-खंड । [१४८ दोहा। प्रहि जोअन कइ आस का जस सपना तिल अाधु । मुहमद जिअत-हि जे मुर तिन्ह पुरुखन्ह कह साधु ॥ १४८॥ इति राजा-गजपति-संबाद-खंड ॥१३॥ सत = सत्य = सत्य-प्रतिज्ञा = सत्य-सङ्कल्प । डोल = डोला दोलित हुश्रा = डगा = डोल (दोलति) का भूत-काल। दत्त दान। सत्त= सत्य = सत्य-व्रत। सती समीचीन = सच्ची। कया = काय = शरीर । पद = अपि=निश्चय। श्रगुमन = श्रागमने आगमन-हौ में = प्रारम्भ-ही में = आगे-हो। निहच = निश्चय: निःसंशय । चला = चलदू (चलति) का भूत-काल । भरम भ्रम संशय। डर = भय । खोई =खो कर = नष्ट कर। साहस = विना समझे बुझे कर बैठना = हिम्मत से विना विचारे काम करना। सिद्ध = सिद्धि = मनोरथ का पूरा होना। छाडि = छोड कर ( सञ्छुड्य)। राजू = राज्य। बोहित = वोहित = जहाज = बडौ नाव। दोन्ह = देव (दत्ते ) का भूत-काल। सब = सर्व । साजू= = साज = मामग्रौ। चढा चढ (चरति) का भूत-काल । बेगि = वेगेन = शीघ्र । पेले = पेले गये = चलाये गये = पेलदू (पेलति) से कर्म में प्रत्यय है। धनि = धन्य। पुरुख = पुरुष = मनुष्य । पेम-पँथ = प्रेम-पथ = प्रेम का मार्ग। खेले =खेलहिँ = खेल = (खेलति) का बहु-वचन । जउ= यदि । पहुँच = पहुँचे । पारा पार। बहुरि = भूयः = फिर । श्रादू =ागत्य = श्रा कर । मिल = मिलति । छारा= क्षार = भस्म =राख। ऊतिम उत्तम । कबिलामू = कैलास, वा कबिलासू = क-विलास = ब्रह्मा का विलास, अर्थात् ब्रह्म-सुख । मौचु = मृत्यु । बासू = वास = स्थान ॥ जौन = जीवन । श्रास = आशा = उम्मेद । जम = यथा = जैसे । सपना = खप्न । तिल = तिलान । आधु = अर्ध = श्राधा । साधु = समौचौन ॥ ( वार वार समझाने पर भी) गज-पति ने देखा, (कि राजा का) सत्य-व्रत, अर्थात् सिंहल जाने का सत्य-सङ्कल्प न डगा। (और मन में निश्चय किया, कि) राजा का दत्त, अर्थात् दान (जो अभी निर्विघ्न समुद्र पार होने के लिये किया है) और मत्य-सङ्कल्प दोनों मच्चे हैं, अर्थात् राजा के जौ से लग गई है, कि मैं सिंहल को जाऊँ ॥ (कवि कहता है, कि सच है, जिस ने ) आगे-हौ से उस राह में (जाने के लिये अपना) जीव दे दिया है; उस को अपनी-हौ शरीर नहीं है, (किन्तु) निश्चय से कन्था है, अर्थात् जीव दे देने पर शरीर कहाँ। जो शरीर देख पडती है, उसे शरीर -