पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४१६

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३१०. पदुमावति । १४ । बोहित-खंड । [१४८ अथ बोहित-खंड ॥ १४ ॥ चउपाई। जस रथ रैगि चलइ गज ठाटी। बोहित चले समुद गे पाटौ ॥ धावहिँ बोहित मन उपराहौँ । सहस कोस एक पल मँह जाहौँ । समुद अपार सरग जनु लागा। सरग न घालि गनइ बहरागा॥ ततखन चाल्ह एक देखरावा। जनु धवला-गिरि परबत आवा ॥ उठी हिलोर जो चाल्ह नराजी। लहरि अकास लागि भुइँ बाजी॥ राजा सैंति कुऔर सब कहहौँ। अस अस मच्छ समुद मँह अहहौं तेहि रे पंथ हम चाहहिँ गवना। होहु सँजूत बहुरि नहिँ अवना ॥ 11 दोहा। गुरु हमार तुम्ह राजा हम चेला तुम्ह नाथ । जहाँ पाउँ गुरु राखइ चेला राखइ माँथ ॥१४६ ॥ हाथी। = जस = यथा = जैसे । रैगि = (रिगि गतौ) रिङ्गण कर = रँग कर। गज = ठाटौ ठठम् गे= गये। धावहिं = धावद ठट = यूथ। पाटी= पाटनम् हजार। ( धावति) का बहु-वचन। उपराही = उपरि-हि = ऊपर। सहस कोम - क्रोश । पल = घटौ का माठवाँ भाग। अढाई पल का एक मिनट होता है। = पट।