पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४२०

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३१४ पदुमावति । १३ । बोहित-खंड । [१५० - १५१ तगिलोऽप्यस्ति राघवः' (समुद्र में मछलियों के निगलने-वाला मत्स्य है, उस को भी निगलने-वाला दूसरा मस्य है और उस को भी निगलने-वाला राघव है)। (कहावत है, कि समुद्र में राघव और यादव नाम के दो परस्पर प्रतिस्पर्धी महापर्वताकार मत्स्य हैं, जो परस्पर एक एक को लड़ने के लिये ढूंढते फिरते हैं। जिस दिन दोनों से भेंट होगी और वे दोनों लडने लगेंगे, उसी दिन उन के प्रवल- वेग से समुद्र तरङ्गित हो कर, पृथ्वी के चारो ओर फैल जायगा, जिस से संमार में प्रलय हो जायगा) ॥ तिम (रोह) के ऊपर राज-पक्षी मंडराते हैं, जिन को परिकाहीं हजारों कोस तक की होती है। (और) जो, (कि) उस मत्स्य (रोह) को ठोर से पकड लेते हैं, (और उसे) ले कर (अपने ) बच्चे के मुह में चारा देते हैं। जब वे पक्षी (राज-पक्षी) बोलते हैं (तब प्रति-ध्वनि से) श्राकाश गर्जता है, अर्थात् आकाश गर्जने लगता है। (और) जब (उन के) डैने डोलते हैं, (तब ) समुद्र डोलते हैं, अर्थात् समुद्र डोलने लगते हैं ॥ (मलाह कहते हैं, कि आगे बडे बडे भयङ्कर समुद्र हैं) तहाँ न चन्द्र, (और) न सूर्य है, (सब) असूझ हैं, अर्थात् तहाँ चाँद, सूर्य तारा-गण कुछ भी नहीं देख पडते। ऐसे (कठिन समुद्र) को जो पहले-हौ समझ बूझ लेता है, अर्थात् पहले-हौ से समुद्र को इस स्थिति को समझ बूझ कर, जो धैर्य धरता है, मो (पार होने के लिये जहाज पर) चढता है । (अपने ) मत्य कर्म, सत्य धर्म, (और) सत्य नियम से, दम में कोई एक (समुद्र- पार) जाता है, (मो) जब (ममुद्र-) पार जहाज हो जायगा, तब कुशल और क्षेम (समझना चाहिए)॥ १५ ॥ चउपाई। राजइ कहा कीन्छ सो पेमा। जेहि र कहाँ कर कूसल खेमा ॥ तुम्ह खेवहु जउ खेवइ पारहु । जइसइ आपु तरह मोहिँ तारह ॥ माँहि कसल कर सोच न आता। कुसल होत जउ जनम न होता ॥ धरती सरग जाँत पर दोज। जो तेहि बिच जिउ बाँच न कोज । हउँ अब कुसल एक पइ माँगउँ। पेम-पंथ सत बाँधि न खाँगउँ जउ सत हिअ तउ नयनहिँ दौआ। समुद न डरइ पइठि मरजौबा ॥ तह लगि हेरउँ समुद ढिढोरी। जहँ लगि रतन पदारथ जोरी ॥