पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४८२

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३७६ पदुमावति । १७ । मंडप-गवन-खंड । [१७० बहुत F = भोर = भौर = प्रातःकाल। साँझ = सन्ध्या। सिंगो = Pटङ्गी = हरिण के मौंग का बाजा। निति = नित्य = नित । पूरी = पूर (पूरयति) का स्त्री-लिङ्ग में भूत-काल का एक- वचन । कंथा = कन्या = गुदडौ। जरदु = (ज्वलति) जरती है। श्रागि = अग्नि । जनु = यथा = जैसे = यथा नु । लाई = लगाई = लगद (लगति) का णिजन्त में रूप । बिरह = विरह = वियोग = जुदाई । धंधोर = धन-धुरा = धन शब्द का धुरा, अर्थात् लवर के साथ काठ का जलना = होलिका = होलौ। जरत = जरता बरता त्रा। बुझाई = बुझदू = बुतद् (बुदति) = बुझता है। रात = रक्त = लाल। निमि = निशि = रात्रि। मारग= मार्ग = राह । जागे = जागदू (जागर्त्ति) का पुंलिङ्ग में भूत-काल का बहु-वचन। चक्रित = चकित। वा चक्रित = चक्रीतः = कुलाल से प्राप्त, अर्थात् खेलौने का। चकोर एक पक्षिविशेष, जो अग्नि का अंगारा खाता है, और रात को चन्द्र-हो को ओर दृष्टि किये रहता है, दूम प्रान्त में सर्वत्र प्रसिद्ध है। कुंडल = कुण्डल = कर्ण-मुद्रा, जो कान में योगी लोग पहरे रहते हैं ( १२८ ३ दोहे को छठवौँ चौपाई देखो ) । सौम = शीर्ष = शिर। भुई = भूमि। लावा = लगाया = लगावद (लगयति) का पुंलिङ्ग में भूत-काल का एक-वचन । पार्वरि= पामरौ = पादुका = पनहौ । पावा = पावं = पाद पैर । जटा = केशों के लटों का समूह । छोरि = सञ्छुय = छोर कर। बार = बाल = केश। बाहारउ = बोहारूँ = बोहार (अवहरति ) का सम्भावना में उत्तम-पुरुष का एक-वचन । पथ = पन्थाः राह । श्राउ = श्रावे= श्राव (श्रायाति) का सम्भावना प्रथम-पुरुष का एक-वचन । वारउँ = वारूं = वारद् (वारयति) का लोट में उत्तम-पुरुष का एक-वचन ॥ चारि-= चारो। चकर = चक्र = मण्डल फिरद् ( स्फुरति) = फिरता घूमता = दण्ड = घटी। रहद (रहति) = रहता है। थिर = स्थिर । मार = मार कर। भसम = भस्म = राख । पवन = वायु। मंग = मङ्ग = साथ। पररान = जिस के श्रापरे ठहरना हो ॥ (श्राकाश-वाणी होने पर मण्डप के पूर्व-द्वार पर राजा) व्याघ्र-चर्म पर बैठ कर, और तपखौ हो कर, अर्थात् शरीर के ऊपर भस्म को रमाय कर, (श्रासन मार ) पद्मावती, पद्मावती जपने लगा ॥ जिस ( पद्मावती) के दर्शन के लिये (राजा) वैरागी हो गया है, उमौ से दृष्टि और समाधि लग गई, अर्थात् पद्मावती-हो को ओर ज्ञान- दृष्टि कर, राजा ने समाधि को लगाया। फिंगरौ को लिये (राजा) व्यर्थ बजाया करता है (और) साँझ सबेरे नित्य भिंगौ को भी पूरा किया, अर्थात् बजाया किया। । अँड = प्राण । अधार =श्राधार