पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५११

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१८५] सुधाकर-चन्द्रिका । ४०५ तदा। मिलि कइ बिछुर मरन कइ आना। कित आउ जउ चलेहु निदाना ॥ अनु रानी हउँ रहतेउँ राँधा। कइसइ रहउँ बचा कर बाँधा। ता करि दिसिटि अइस तुम्ह सेवा। जइस कूँज मन सहज परेवा ॥ दोहा। बसइ मौन जल धरती अंबा बसइ अकास । जउ पिरौति पइ दोउ मँह अंत होहिं एक पास ॥ १८५॥ हौरा-मनि = हौरा-मणि शुक । कही= कहा का स्त्रीलिङ्ग (कथ ब्यक्तायां वाचि से )। यह = अयम् । बाता= वार्ता = बात । पाउ = पाया (प्राप्नोत् ) । पान = पर्ण । भण्उ = भया (बभूव)= हुआ। मुख मुह । राता रक्त = लाल। चला चल (चलति) का प्रथम-पुरुष में लिट् का एक-वचन । सुत्रा= शुक= सूगा= सुग्गा । तब भा = भया (बभूव) = था। पराउ: परस्य पराया = दूसरे का । कसद = कैसे कथम् । रहा = रहे = रहदू (रहते ) का प्रथम-पुरुष में लिङ् का एक-वचन। निति: नित्य । चलदू = चलनाय = चलने के लिये। सवारद' = सँवारता है (संमार्जयति)। पाँखा = पंख पर। आजु = आज (अद्य) । काल्हि कल = कल्य । राखा =रकले (रक्षेत् )। जनउँ= जानता हूँ (जाने )। कहाँ = कुत्र । दऊँ दशा । जश्रा = उदय हुई (उदगात् )। त्राप्रउ = आए (या प्रापणे से)। मिल = मिलने (मेलन)। चल = चले (चल सञ्चलने से)। मिलि = मिल कर (मिलित्वा)। सूत्रा शुक= सुआ। बिकुर बिकुडना = विच्छुरण । मरन मरण = मरना। क= का=क। श्राना=प्रागमन । कित = किमुत = क्यों। जउ = यदि। निदान अंत में। अनु = आन = शपथ, (अण प्राणने से)। वा अनु = [अनदू (अण शब्दार्थ का अणति) से ] कहता हूँ। हउँ= अहम् = मैं । रहतउँ= रहता (रह त्यागे धातु से ) राँधा=राधित भगवान् का नाम लेता वा ध्यान करता (कृष्णाय राध्यति देवं पर्यालोचयतीत्यर्थः, सिद्धान्तकौमुदी, दिवादि)। रहउँ= रह (रह त्यागे से)। बचा = वचन । कर = का। बाँधा = बाँधा हुआ (बध बन्धने से)। ता करि= तिस को (दूस ग्रन्थ का ७ पृ० ५ वे दोहे की ३ चौपाई देखो)। दिसिटि = दृष्टि। अदूस = ऐसा = एतादृश । सेवा = सेवद् (सेवते ) का मध्यम- पुरुष में लिट् का बहु-वचन । जदूस = यथा = जैसे। पूँज = कुञ्ज वन को झाडौ। खभाव ही से। परेवा = पारावत, यहाँ साधारण पचौ ॥ पच-