पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६०३

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२२३] सुधाकर-चन्द्रिका। ४८५ - सउ= याचना । जिउ = जीव = प्राण । लौन्हे = लिए हुए (ला दाने से)। दूहाँ = अत्र = यहाँ । दूँदर इन्द्र = देवताओं का राजा। तपा = तप = तपद (तपति) = तपता है। जउँ = यदि । हि = निश्चयेन । रिसाद रिस करे = क्रुद्ध हो (रुय्येत् ) । सूर = सूर्य। डरि = डर कर (श्रादर्य)। छपा = छप छपे = छिपे (चिप प्रेरणे से)। हहु = हो (भवथ)। तो = तो = तर्हि। बनिज = वाणिज्य । बैसाहह = बेसाहद (क्रोणीते) का लोट लकार, मध्यम-पुरुष, बहु-वचन । भरि =भर कर (मृत्वा)। बदूपार व्यापार । लेह = ले ( लाति) का लोट लकार, मध्यम-पुरुष, बहु-वचन । लेहु = लेश्रो (ला दाने से ) । चाहहु = चाहो (इच्छथ । जुगुति = युक्ति = उपाय । से । माँगह = माँगो । भुगुति = भुक्ति = भोजन । लै = ले कर (श्रालाय)। मारग = मार्ग = राह । लागहु = लगिए = लगद (लगति) का लोट लकार, मध्यम-पुरुष, बहु-वचन । देश्रोता = देवता । हारी = हार गए (६ हरणे से)। पतंग पतङ्ग = फतिंगे। को= 1 = क्व = कौन । श्राहि हो। भिखारी= भिक्षुक = भिखमंगा ॥ बदरागी = वैरागौ। कहत = कहते (कथयन्) । मानहु = मानिए = मानद (मन्यते) का लोट लकार, मध्यम-पुरुष, बहु-वचन । कोहु = क्रोध । माँगि = माँगना किछु = कुछ = किञ्चित् । भिच्छा = भिक्षा = भीख । खेलि = (खेलित्वा) खेल कर। होहु = होश्रो (भवत) ॥ दो दूतों ने (गढ से ) उतर कर, (योगिओं के पास ) श्रा कर, (उन को) प्रणाम किए (और पूछे) कि तुम लोग योगी हो वा बनिजारे। राजा श्राज्ञा हुई है कि आगे जा कर खेलो, गढ के तल को छोड कर अन्यत्र जा कर एकट्ठाँ होत्रो । किम के सिखाने से इस तरह (गढ के नीचे) लगे हो, (क्या) जीव को हाथ में ले कर मरने आए हो । यहाँ इन्द्र के ऐमा राजा (गन्धर्व-सेन ) तपता है, यदि सचमुच क्रोध करे तो सूर्य डर कर छिप जाय। (यदि ) बनिए हो तो बनिज को खरीदो, ( और अपने ) व्यापार भर जो चाहो मो लेो। यदि योगी हो तो युक्ति (कायदे वा रौति) से माँगो, भोजन लो और (भोजन) ले कर रास्ता पकडो। देवता ऐसे (लोग ) तो यहाँ हार हो गए, तुम्ह लोग फतिंगे ऐसे भिखारी क्या हो, अर्थात् फतिंगे ऐस तुम फकौरों की क्या गिनती ॥ तुम लोग योगौ वैरागी हो, (मेरे ) कहने पर क्रुद्ध न हो, कुछ भीख माँग लो ( फिर ) खेल कूद कर अन्यत्र कहौं चले जाश्रो ॥ २२३ ॥