पृष्ठ:पदुमावति.djvu/७२

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२४ पदुमावति । १ । असतुति-खंड । [१७ - १८ जिस ने दश अश्वमेध यज्ञ को किया है, से भी ( उस ने भी) दान पुण्य में इस को बराबरौ नहीं दिया, अर्थात् नहीं किया ॥ शेर शाह सुलतान (बादशाह ) संसार में ऐसा दानौ उत्पन्न हुआ, कि इस के ऐसा न कोई हुआ, न कोई होगा, और न कोई ऐमा दान देता है (देव = देता है) ॥ १७ ॥ चउपाई। सइद असरफ पौर पिारा। तेइ माहिँ पंथ दोन्ह उँजिवारा ॥ लेसा हिअइ पेम कर दौथा। उठी जोति भा निरमर होआ ॥ मारग हुता अँधेर असभा। भा अँजोर सब जाना बूझा ॥ खार समुदर पाप मार मेला। बोहित धरम लोन्ह कइ चेला ॥ उन्ह मोर करिअ पोढि कइ गहा। पाउँ तौर घाट जो अहा ॥ जा कह होइ अइस कनहारा। ता कह गहि लेइ लावइ पारा॥ दस्तगीर गाढे कइ साथी। जहँ अउगाह देहिँ तहँ हाथी ॥ दोहा। जहाँगीर वेइ चिसती निहकलंक जस चाँद । वेइ मखदूम जगत के हउँ उन्ह के घर बाँद ॥१८॥ सअद = सैयद । असरफ अशरफ । पिसारा प्यारा । पेम = प्रेम । दोश्रा दोप= दौया। हुता = था। समुदर = समुद्र। मेला = डाल दिया। बोहित = बडौ नाव। चेला = शिय्य । करिश्र = कडी जो नाव को खींचने के लिये नाव में लगी रहती है, कडी के बदले मल्लाह लोग छोटी नाव में खौचने के लिये रस्सी भी लगा लेते हैं जिसे गोन कहते हैं। आज कल लोग उस डाँडे को करवारी कहते हैं, जो कि खेने के लिये नाव के अगल बगल में बाँधा रहता है। पोढि कद = पुष्ट कर के = मजबूत कर के । कर्णधार = पतवार को पकडने-हारा। दस्तगौर पकडने-वाले = रक्षा करने-वाले । अउगाह = अवगाह = अगाध = अथाह । हाथी = हाथ। जहाँगीर = एक पदबौ। चिसती = एक मुसल्मानों को जाति । निहकलंक = निष्कलङ्क । मखदूम = मालिक =खामौ । बाँद = बिना तनखाह का टइलुभा ॥ बादशाह को ईश्वर का अंश समझ कर, कवि ने पहले बादशाह का वर्णन किया, अब अपने गुरु-वरों का वर्णन करता है । - - - गहा = पकडा। कनहारा = = हाथ