पृष्ठ:पदुमावति.djvu/७३७

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२८४-२८५] सुधाकर-चन्द्रिका। माली उस फल को पानी से धो कर डालौ में ले गया। राजा ने अपने लोगों के विचार से उस अजान फल के एक टुकडे को कुत्ते को खिलाया। वह खाते हो मर गया। इस पर राजा ने क्रोध कर कि यह दुष्ट सुग्गे ने मुझे मारने के लिये विष-फल लाया था, उस सुग्गे को मरवा डाला। फिर पौछे से बहुत दिनों तक वह पेंड विष-वृक्ष नाम से प्रसिद्ध हुआ। एक दिन बुढिया मालिन ने अपने पति से रूठ कर मरने की इच्छा से उस विष-फल को खा लिया। खाते हो मोरह वर्ष की जवान हो गई। दूस लौले को देख कर उस का पति माली ने भी खाया । वह भी खाते हो बौस वर्ष का जवान हो गया। राजा को जब ये सब बातें मालूम हुई तब हाथ मल मल कर पछताने लगा कि हाय मैं विना जाने नाहक अपराध के विना ही अपने सुग्गे को मरवा डाला ॥ २८४ ॥ चउपाई। पहिलइँ भाउ भाट सत-भाखौ। पुनि बोला हौरामनि साखौ ॥ राजहि भा निसचइ मन माना। बाँधा रतन छोरि कइ अाना ॥ कुल पूछा चउहान कुलौना। रतन न बाँधइँ होइ मलौना ॥ हौरा दसन पान रँग पाके। बिहँसत सबहिँ बौजु बर ताके मुंदरा सवन मइन सउँ चाँपे। राज-बइन उघरे सब झाँपे ॥ आना काटर एक तुखारू। कहा सो फेरइ भा असवारू ॥ फेरा तुरइ छतीसउ खूरौ। सबहिँ सराहा सिंघल-पूरौ ॥ दोहा। कुर बतौसउ लक्खना सहस करा जस भानु । कहा कसउटी कसिअइ कंचन बारह बानु ॥ २८५॥ =भया =त्रा। पहिल+ = पहले = प्रथमे । भण्उ = बभूव भाट = भट = स्तुति करने-वाला। सत-भाखौ = सत्य-भाषौ = सच बोलने-वाला। पुनि = पुनः = फिर । बोला = बोलदू (वदति ) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । होरामनि = हीरामणि (शुक)। साखौ = साक्षी = गवाह । राजहि = राज्ञः = राजा को। भा = बभूव = भया = हुआ। निसचद् = निश्चय = विश्वास । माना = मानद (मन्यते) का