पृष्ठ:पदुमावति.djvu/७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२८ पदुमावति । १ । असतुति-खंड । [२० मौर खुसरो का विद्या-गुरु था। यह सन् १३२५ ई० में मरा है। दूस का चेला मिराजुद्दीन, और सिराजुद्दौन का चेला शेख अलाउलहक्क था। अलाउलहक्क का पुत्र और शिष्य, पण्डोई का नूर कुतुब आलम था, जो कि सन् १ ४ १५ ई० में मरा है। अलाउलहक्क का दूसरा शिष्य सैयद अशरफ जहांगौर था जिस कौ चर्चा १८ वे दोहे में कवि ने किया है। सैयद अशरफ का बडा प्रसिद्ध शिष्य शेख हाजी था। शेख हाजी के दो शिष्य थे एक का नाम शेख मुबारक, दूसरे का शेख कमाल । शेख नूर कुतुब आलम और सैयद अशरफ जहांगीर दोनों गुरु-भाई थे, और दून दोनों को आठवौं पौढ़ी में मलिक मुहम्मद हुए हैं ॥ मुसल्मान लोग इस प्रकार से दून के गुरु परम्परा को लिखते हैं ॥ निजामुद्दीन औलिया ( जो सन् १३२५ ई० में मरे)। सिराजुद्दीन । | पोख अलाउल हक्क । पण्डोई का शेख कुतुब आलम । सैयद अशरफ जहांगीर। मानिक पुर का शेख हशामुद्दीन । शेख हाजी। सैयद-राजौ हामिद शाह । पोख मुबारक। पोख कमाल । शेख दानियाल (जो सन् १४८६ ई० में मरे)। सैयद मुहम्मद । T शेख अल्हदाद । शेख बुरहान । शेख मोहिदी (मुहिउद्दीन ) । - मलिक मुहम्मद ( जायस के )। दूस गुरु परम्परा से और ग्रन्थ-कार के लेख से बहुत भेद है। लेख से तो स्पष्ट है कि मलिक मुहम्मद के मन्त्र-गुरु सैयद अशरफ और विद्या-गुरु मोहिंदौ थे ॥ कालपी जो कि बुन्देल-खण्ड में है, वहाँ के रहने वाले शेख बुरहान थे। ऐसा सुना जाता है, कि ये सौ वर्ष के हो कर ६७० हिजरी सन् (स. १५६२-६३ ई.) में मरे हैं ।