पृष्ठ:परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति.djvu/१२६

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03 ६. उत्तराधिकारिणियो को छोड़कर, वाकी सब के लिये गोन के भीतर विवाह करने की मनाही। यह अपवाद, और ऐसी सूरत में गोत्र के भीतर ही विवाह करने का आदेश , स्पष्ट रूप में सिद्ध करते है कि पुराना नियम अव भी कायम है। यह बात इस सर्वमान्य नियम से और स्पष्ट हो जाती है कि स्त्री विवाह करने पर अपने गोन की धार्मिक रीतियों को त्याग देती थी और अपने पति के गोत्न को धार्मिक रीतियों को स्वीकार कर लेती थी। साथ ही पत्नी पति की बिरादरी की सदस्या हो जाती थी। इस नियम से , तथा डिकियारकोज के एक प्रसिद्ध उद्धरण से सिद्ध हो जाता है कि नियम गोन के बाहर हो विवाह करने का था। 'चरीक्लीज! मे बेकर सीधे- सीधै यह मानकर चलते है कि किसी को भी अपने गोन के भीतर विवाह करने की इजाजत नहीं थी। ६. गोत्र को अधिकार था कि चाहे तो वह किसी बाहरी आदमी को भी अपना सदस्य बना ले। यह कार्य उसे किसी परिवार का सदस्य बनाकर। परन्तु सार्वजनिक समारोह के द्वारा सम्पन्न होता था। लेकिन ऐसा अपवादस्वरूप ही होता था। १०. गोत्रो को अपने मुखियानो को चुनने और बर्खास्त करने का अधिकार था। हम यह जानते है कि हर गोन का एक आर्कोन होता था; परन्तु यह कही नही लिखा गया है कि यह पद कुछ विशेष परिवारों के तोगो को ही वंशानुक्रम से मिलता था। बर्बर युग के अन्त तक सदा इसी की अधिक सम्भावना रहती है कि आनुवंशिक पद न होगे, क्योकि वे उन अवस्थामों से मेल नहीं खा सकते जिनके अंतर्गत गोन मे अमीर और गरीब के बिलकुल वरावर अधिकार होते है। पोट ही नही, निबूहर, मोम्मसेन और प्राचीन काल के अन्य इतिहासकार भी गोत्र की समस्या को सुलझाने में असमर्थ रहे थे। इन इतिहासकारो ने गोत्र की बहुत-सी विशेषतापो को सही देखा, परन्तु गोन को मदा परिवारों का समूह समझा, और इसलिये उमकी प्रवृति पौर उत्पत्ति को समझना उनके लिये असम्भन हो गया। गोल-व्यवस्था में परिवार संगठन की इकाई न तो कभी था और न हो सकता था, पयोकि पति-पलो मावश्यक रूप से दो भिन्न गोत्री के सदस्य होते थे। पूरा गोत्र एक विरादरी का अंश होता या। विरादरी कबीले वा हिस्मा होती पी। परन्तु परिवार का प्राधा भाग पति के गोन का होता था और माधा -पत्नी के। उन्होंने 1 १२८