यह समझना होगा कि हर सामुदायिक कुटुम्ब हर साल नयी जमीन पर खेती करता था और पिछले साल जोती गयी जमीन को हल चलाकर पाली छोड़ देता था , या उसे बिलकुल काम मे न लाता था। चूंकि आबादी बहुत कम थी, इसलिये परती जमीन की कोई कमी न होती थी और जमीन को लेकर होनेवाले झगड़ों की भी कोई आवश्यकता न थी। कई सदियो वीत जाने के बाद, जब कुटुम्ब के सदस्यो की संख्या इतनी अधिक हो गयी कि उत्पादन की तत्कालीन परिस्थितियों में मिलकर खेती करना मसम्भव हो गया, तव कहीं जाकर ये सामुदायिक कुटुम्ब भंग हुए। पहले जो साझे के खेत और चरागाह थे, उन्हें प्रचलित तरीके से अलग-अलग कुटुम्बो के वीच वांट दिया गया जो उस समय तक बन गये थे। शुरू में यह बंटवारा एक निश्चित अवधि के बाद बार-बार होता रहता था, फिर यह एक बार सदा के लिये हो गया, लेकिन जंगल, चरागाह और जलागार सामूहिक सम्पत्ति बने रहे। जहां तक सम का सम्बन्ध है, विकास का यह क्रम ऐतिहासिक हर से पूरी तरह प्रमाणित हो चुका मालूम पड़ता है। जहां तक जर्मनी का और अन्य सभी जामनिक देशों का सम्बन्ध है , इस यात से इनकार नही किया जा सकता कि टेसिटस के समय तक ग्राम-रामुदाय का मिलमिला दिखाने के पुराने ग़याल के मुकाबले में यह मत बहुत-सी यातो में मून सामग्री का अधिक अच्छा स्पष्टीकरण करता है और कठिनाइयो को प्यारा पासानी से हल करता है। सबसे पुरानी दस्तावेजों को- उदाहरण के लिये Coder Laureshamensions को-मार्ग प्राम-रामुदाय की तुलना में सामुदायिक पुटुम्ब के भाधार पर ज्यादा मासानी से समा जा सरता है। दूगरी मोर ग मत से नयी कटिनारयां भी पैदा हो जाती है और नयी समस्याएं उट पड़ी होती है, जिन्हें हल करना जरूरी है। यह मामला पोर पोज होने पर ही तप हो गरेगा। परन्तु में ग यात गे नगर नही पर गा कि यहा गम्मत है कि जर्मनी, संगिनेपिया और इंगनं: में भी मामुपा कुटुम्र योच पी मंसि भी गा हो। जरा गौर । गमप में जर्मनी ने मुहर भी गम बानी मनागर गला ग र रिसा पा, पौर मुहगर ये गर्ने र निये उरण स्यानो माग रहे थे, या गिटग गर गर करें १८२