पृष्ठ:परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति.djvu/१९७

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परिजनों ने उसका स्थान ले लिया। पुरानी जन-सभा को दिखावे के लिये कायम रखा गया, पर वह अधिकाधिक महज़ सेना के उपनायको तथा नये पनप रहे अभिजात वर्ग के लोगो की सभा में बदलती गयी। जिस तरह रोम के किसान गणराज्य के अन्तिम काल मे बरबाद हो गये थे, ठीक उसी तरह लगातार गृह-यद्धों और विजयाभियानो के कारण -- कार्ल महान् के काल में खास तौर पर विजयाभियानो के कारण ~ अपनी भूमि के मालिक स्वतत्र किसान , यानी फ्रैंक जाति की अधिकाश जनता चुस और छीज गयो थी और घोर दरिद्रता की स्थिति में पहुंच गयी थी। शुरू मे, पूरी सेना केवल इन किसानो की हुमा करती थी; फैक प्रदेशो की विजय के बाद भी सेना का केद्र भाग इन किसानो का ही हुआ करता था, परन्तु नवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक ये किसान इतने ज्यादा गरीब हो गये थे कि पाच में से मुश्किल से एक आदमी जंग का सामान मुहैया कर पाता था। पहले स्वतंत्र किसानों की सेना थी जो सीधे राजा के आह्वान पर इकट्ठा हो जाया करती थी। अब उसकी जगह नवोदित धनिकों के खिदमतगारो की सेना ने ले ली। इन खिदमतगारी में वे भूदास भी थे जो उन किसानों के वंशज थे जो पहले राजा के सिवा और किसी को अपना स्वामी नही मानते थे और उसके भी कुछ पहले किसी को, राजा तक को भी, अपना स्वामी नही मानते थे। कालं महान् के उत्तराधिकारियो के शासन काल में इतने गृह-युद्ध हुए, राजा की शक्ति इतनी क्षीण हो गयी और उसके साथ-साथ नये धनिकों ने , जिनमें अब कार्ल महान् द्वारा बनाये गये जिलो के वे काउट (gaugrafen) 15 भी शामिल हो गये थे जो अपने पद को पुश्तैनी बनाने की कोशिश कर रहे थे, इतनी ज्यादा ताकत हडप ली कि फ़क किसानों की वरबादी और भी बहुत ज्यादा बढ़ गयी। नोर्मन लोगों के आक्रमण ने वाकी कसर भी पूरी कर दी। कालं महान् की मृत्यु के पचास वर्ष बाद फेक साम्राज्य नोमन आक्रमणकारियो के चरणो पर उसी निस्सहाय अवस्था में पड़ा था, जैसे कि उसके चार सौ वर्ष पहले रोमन साम्राज्य फ्रैंक लोगों के कदमों पर पड़ा था। मक साम्राज्य इस समय न केवल बाहरी दुश्मनों के सामने निस्सहाय या, बल्कि समाज की अंद व्यवस्था, या शायद उसे स्था कहना ज्यादा सही होगा, भी उसी निस्सहाय स्थिति मे थी। स्वतंत्र फेंक किसान अब उसी स्थिति में थे, जो उनके पूर्ववर्ती रोम के colon की स्थिति हो १६७