पृष्ठ:परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति.djvu/१९९

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वितरण , उस काल में खेती तथा उद्योग के उत्पादन के स्तर के पूर्णतः अनुरूप था, और इसलिये वह अपरिहार्य था; दूसरे यह कि उस काल के बाद आनेवाले चार सौ वर्षों में उत्पादन का वह स्तर न तो खास ऊपर उठा और न नीचे गिरा, और इसलिये उससे लाजिमी तौर से उसी पुराने ढग का सम्पत्ति-वितरण तथा आबादी का वर्ग-विभाजन पैदा हुआ। रोमन साम्राज्य की अन्तिम शताब्दियों में शहर का देहात पर प्रभुत्व नही रह गया था और वह जर्मन शासन की प्रारम्भिक शताब्दियो मे भी फिर से कायम नहीं हो पाया। इसका अर्थ यह है कि इस पूरे अरसे में खेती तथा उद्योग, दोनो का स्तर बहुत नीचे था। सामान्यतः ऐसी हालत होने पर और उसके फलस्वरूप शासक बड़े-बड़े जमीदारो और पराधीन छोटे-छोटे किसानो का होना लाजिमी है। ऐसे समाज मे न तो दास-श्रम के सहारे चलनेवाली बड़ी-बड़ी जागीरों की रोमन अर्थ-व्यवस्था, और न भूदास- श्रम की सहायता से चरनेवाली बड़े पैमाने की नयी खेती की कलम लगायो जा सकती थी। इस बात का सबसे अच्छा प्रमाण यह है कि कार्ल महान् ने अपने मशहूर शाही खास महाल में खेती के जो विस्तृत प्रयोग किये थे, उनका वाद मे चिह्न तक न बचा । केवल मठों ने इन प्रयोगो को जारी रखा और केवल उन्ही के लिये वे लाभप्रद सिद्ध हुए। परन्तु ये मठ असाधारण ढंग के सामाजिक निकाय थे जिनकी नीव ब्रह्मचर्य पर रखी गयी थी। वे ऐसा काम करते थे जो अपवाद होता था और इसलिये वे स्वयं अपवाद ही रह सकते थे। फिर भी, इन चार सौ वर्षों में प्रगति हुई। भले ही इस काल के अंत में हमे फिर वे ही मुख्य वर्ग दिखायी पड़ते हो जो मारम्भ में दिखायी पडे थे, पर जिन लोगो को लेकर ये वर्ग बने थे उनमें जरूर परिवर्तन हो गया था। प्राचीन काल की दास-प्रथा मिट गयी थी। वे तवाह और बरबाद स्वतंत्र नागरिक भी नही रह गयेथे जो मेहनत करना अपनी शान के खिलाफ समझते थे। रोमन colonus और नये भूदासो के बीच स्वतंत्र फ़क किसान का आविर्भाव हुआ था। मरणोन्मुख रोमवाद की "निरर्थक स्मृतियां और निरुद्देश्य संघर्ष" अव मर चुके थे और दफ़ना भी दिये गये थे। नवी सदी के सामाजिक वर्गों का जन्म एक पतनोन्मुख सभ्यता के दलदल में नहीं, बल्कि एक नयी सभ्यता के प्रसव-काल में हुआ था। नयी नस्ल , जिसमे मालिक पौर नौकर दोनो ही.थे, अपने रोमन पूर्ववर्तियो के मुकाबले में मनुष्यों १६६