पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१३३

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क्षमा.
 

को लोगों ने आस्मान पर चढ़ा रक्खा था इसलिये केवल हरकिशोर के जवाब देनें सै उस्के मन मैं इतना गुस्सा भर रहा था.

"उस्नें बड़ी ढिटाई की वह अपनें रुपे तत्काल मांगनें लगा और रुपया लिये बिना जानें सै साफ़ इन्कार किया" लाला मदनमोहन नें बड़ी देर सोच विचार कर कहा.

"बस उस्का यही अपराध है? इस्मैं तो उस्नें आप की कुछ हानि नहीं की मनुष्य को अपना सा जी सबका समझना चाहिये. आप का किसी पर रुपया लेना हो और आप को रुपे की ज़रूरत हो अथवा उस्की तरफ़ सै आप के जीमैं किसी तरहका शक आजाय अथवा आप के और उस्के दिल मैं किसी तरह का अन्तर आजाय तो क्या आप उस्सै व्यवहार बंद करने के लिये अपने रुपेका तकाज़ा न करेंगे? जब ऐसी हालतों मैं आप को अपने रुपे के लिये औरों पर तक़ाज़ा करने का अधिकार है तो औरों को आप पर तक़ाज़ा करने का अधिकार क्यों न होगा? आप तो बेसबब ज़रा, ज़रासी बातों पर मुंह बनाएं, वाजबी राह सै ज़रासी बात दुलख देनें पर उस्को अपना शत्रु समझनें लगें और दूसरे को वाजबी बात कहने का भी अधिकार न हो!" लाला ब्रजकिशोर ने ज़ोर देकर कहा.

"साहब! उस्नें लाला साहब को तंग करने की नीयत से ऐसा तक़ाज़ा किया था" मुन्शी चुन्नीलाल बोले.