पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१३४

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परीक्षागुरु.
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"लाला साहब को उस्का स्वभाव पहचानकर उस्सै व्यवहार डालना चाहिये था अथवा उस्का रुपया बाकी न रखना चाहिये था. जब उसका रुपया बाक़ी है तो उस्को तक़ाज़ा करने का निस्संदेह अधिकार है और उस्ने कड़ा तक़ाज़ा करने में कुछ अपराध भी किया हो तो उस्के पहले कामोंका संबंध मिलाना चाहिये" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे. "प्रल्हादजीने राजा बलिसै कहा है "पहलो उपकारी करै जो कहुं अतिशय हान॥ तोहू ताको छोड़िये पहले गुण अनुमान॥१॥ बिन समझे आश्रित करै सोऊ क्षमिये तात॥ सब पुरुषनमैं सहज नहिं चतुराई की बात॥२॥" +[१] यह सच है कि छोटे आदमी पहले उपकार करकै पीछे उसका बदला बहुधा अनुचित रीतिसे लिया चाहते हैं परंतु यहां तो कुछ ऐसा भी नहीं हुआ."

"उपकार हो या न हो ऐसे आदमियोंको उन्की करनी का दंड तो अवश्य मिलना चाहिये." मास्टर शिंभूदयाल कहनें लगे. जो उन्को उन्की करनीका दंड न मिलेगा तो उन्की देखा देखी और लोग बिगड़ते चले जायँगे और भय बिना किसी बातका प्रबंध न रह सकेगा सुधरे हुए लोगों का यह नियम है कि किसीको कोई नाहक न सतावै और सतावै तो दंड पावै. दंडका प्रयोजन किसी अपराधी सै बदला लेनेका नहीं.


  1. + पूर्वोपकारी यस्ते स्‌यादपराधगरीयसि॥
    उपकारण तत्तस्‌य क्षंतव्य मपराधिनः
    अबुद्धिमाश्रितानांतु क्षंतव्यमपराधिनां॥
    नहि सर्वत्र पांडित्य सुलभं पुरुषेणवै