पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परीक्षागुरु.
१३०
 


"जिस्समय साइराक्यूज़वालों ने एथेन्स को जीत लिया साइराक्यूज़ की कौन्सिल मैं एथीनियन्स को सजा देनें की बाबत बिबाद होनें लगा इतनें मैं निकोलास नामी एक प्रसिद्ध गृहस्थ बुढ़ापे के कारण नौकरों के कंधेपर बैठकर वहां आया और कौन्सिल को समझाकर कहनें लगा "भाइयो! मेरी ओर दृष्टि करो मैं वह अभागा बाप हूं जिस्की निस्बत ज्यादः नुक्सान इस लड़ाई मैं शायद ही किसी को हुआ होगा मेरे दो जवान बेटे इस लड़ाई मैं देशोपकार के लिये मारे गए उन्सै मानो मेरे सहारे की लकड़ी छिन गई, मेरे हाथ पांव टूट गए, जिन एथेन्सवालों ने यह लड़ाई की उन्को मैं अपने पुत्रों के प्राणघातक समझ कर थोड़ा नहीं धिक्कारता तथापि मुझको अपने निज के हानि लाभ के बदले अपनें देश की प्रतिष्ठा अधिक प्यारी है. बैरियों सै बदला लेने के लिये जो कठार सलाह इस्समय हुई है वह अपनें देश के यश को सदा सर्वदा के लिए कलंकित कर देगी. क्या अपनें बैरियों को परमेश्वर की ओर सै कठिन दण्ड नहीं मिला? क्या उन्को युद्ध मैं इस तरह हारनें सै अपना बदला नहीं भुगता? क्या शत्रुओं नें अपनें प्राणरक्षा के भरोसे पर तुमको हथियार नहीं सोंपे? और अब तुम उन्सै अपना बचन तोड़ोगे तो क्या तुम विश्वासघाती न होगे? जीतनें सै अबिनाशी यश नहीं मिल सक्ता परंतु जीते हुए शत्रुओं पर दया करनें सै सदा सर्वदा के लिये यश मिलता है" साइराक्यूज़ की कौन्सिल के चित्त पर निकोलास के कहनें का ऐसा असर हुआ कि सब एथीनियन्स तत्काल छोड़ दिये गए"

"आप जान्ते हैं कि शरीर के घाव औषधि सै रुज जाते हैं