यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३१
क्षमा.
परंतु दुखती बातों का घाव कलेजे पर सै किसी तरह नहीं मिटता" मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.
"क्षमाशील के कलेजे पर ऐसा घाव क्यों होनें लगा है? वह अपनें मन मैं समझता है कि जो किसी नें मेरा सच्चा दोष कहा तो बुरे मान्नें की कौन्सी बात हुई? और मेरे मतलब को बिना पहुंचे कहा तो नादान के कहने से बुरा मानने की कौन्सी बात रही? और जान बूझ कर मेरा जी दुखानें के वास्तै मेरी झूंटी निन्दा की तो मैं उचित रीति सै उस्को झूंटा डाल सक्ता हूं सज़ा दिवा सक्ता हूं फिर मन मैं द्वेष और प्रगट मैं गाली गलौज लड़नें की क्या ज़रूरत है? आप बुरा हो और लोग अच्छा कहैं इस्की निस्बत आप अच्छा हो और लोग बुरा कहैं यह बहुत अच्छा है" लाला ब्रजकिशोर ने जवाब दिया.