पहले हीसैं जान्ता हूँ परन्तु मेरे निकट अनुचित काम करनें के बराबर कोई कठोर दंड नहीं है" लाला ब्रजकिशोर बोले.
"जब आप हमको छोड़नेंहीका पक्का विचार कर चुके तो फिर इतना बादाविवाद करनें सै क्या लाभ है? हमारे प्रारब्धमैं होगा वह हम भुगतलेंगे, आप अधिक परिश्रम न करें" लाला मदनमोहनने त्योरी बदल कर कहा.
"अब मै जाता हूं ईश्वर आपका मंगल करे. बहुत दिन पास रहनें के कारण जानें बिना जानें अबतक जो अपराध हुए हों वह क्षमा करना" यह कह कर लाला ब्रजकिशोर तत्काल अपने मकानको चले गए.
लाला ब्रजकिशोरके गए पीछै मदनमोहनके जीमैं कुछ, कुछ पछतावासा हुआ वह समझे कि "मैं अपनें हटसै आज एक लायक़ आदमीको खो बैठा परन्तु अब क्या? अब तो जो होना था हो चुका. इस्समय हार मान्नेंसै सबके आगे लज्जित होना पड़ेगा और इस्समय ब्रजकिशोरके बिना कुछ हर्ज भी नहीं, हां ब्रजकिशोरनें हरकिशोरको सहायता दी तो कैसी होगी? क्या करैं? हमको लज्जित होना न पड़े और सफाई की कोई राह निकल आवे तो अच्छा हो" लाला मदनमोहन इसी सोच विचार मैं बड़ी देर बैठे रहे परन्तु मनकी निर्बलता से कोई बात निश्चय न कर सके.