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पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१५२

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परीक्षागुरु.
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मैं दो, एक समझवार भी किसी का काम बिगड़ जानें सै, या किसी की जामनी कर देनें से या किसी और उचित कारण सै इस आफ़त मैं फंस जाते हैं परंतु बहुधा लोग अमीरों कीसी ठसक दिखाने मैं और अपनें बूते सै बढ़कर चलनें मैं क़र्जदार होते हैं.

क़र्ज़दारी मैं सबसे बड़ा दोष यह है कि जो मनुष्य धर्मात्मा होता है वह भी क़र्ज़ मैं फंसकर लाचारी सै अधर्म्म की राह चलनें लगता है. जब सै कर्ज़ लेने की इच्छा होती है तब ही सै कर्ज़ लेनेंवाले को ललचानें, और अपनी साहूकारी दिखाने के लिये तरह, तरह की बनावट की जाती है. एकबार क़र्ज़ लिये पीछै क़र्ज़ लेने का चस्का पड़ जाता है और समय पर कर्ज़ नहीं चुका सक्ता तब लेनदार को धीर्य देनें और उस्की दृष्टि मैं साहूकार दीखने के लिये ज्यादाः ज्यादाः क़र्ज़ मैं जकड़ता जाता है और लेनदार का कड़ा तकाज़ा हुआ तो उस्का क़र्ज़ चुकानें के लिये अधर्म्म करने की भी रुचि हो जाती है क़र्ज़दार झूंट बोलनें सै नहीं डरता और झूंट बोले पीछै उस्की साख नहीं रहती वह अपनें बाल बच्चों के हक़ मैं दुश्मन सै अधिक बुराई करता है. मित्रों को तरह, तरह की जोखों मैं फंसाता है अपनी घड़ी भर की मौज के लिये आप जन्मभर के बंधन मैं पड़ता है और अपनी अनुचित इच्छा को सजीवन करनें के लिये आप मर मिटता है.

बहुत सै अविचारी लोग क़र्ज़ चुकानें की अपेक्षा उदारता को अधिक समझते हैं इस्का कारण यह है कि उदारता सै यश मिल्ता है, लोग जगह, जगह उदार मनुष्य की बड़ाई करते फिरते