पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१५३

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कृतज्ञता.
 

हैं परंतु क़र्ज़ चुकाना केवल इन्साफ है इसलिये उस्की तारीफ़ कोई नहीं करता इन्साफ़ को लोग साधारण नेकी समझते हैं इस कारण उस्की निस्वत उदारता की ज्यादः क़दर करते हैं जो बहुधा स्वभाव की तेज़ी और अभिमान सै प्रगट होती है परंतु बुद्धिमानी सै कुछ संबंध नहीं रखती किसी उदार मनुष्य सै उस्का नौकर जाकर कहै कि फ़लाना लेनदार अपनें रुपेका तकाज़ा करने आया है और आप के फ़लानें ग़रीब मित्र अपनें निर्वाह के लिये आप की सहायता चाहते हैं तो वह उदार मनुष्य तत्काल कह देगा कि लेनदार को टाल दो और उस ग़रीब को रुपे देदो क्योंकि लेनदार का क्या? वह तो अपनें लेनें लेता इस्के देनें सै वाह वाह होगी.

परंतु इन्साफ़ का अर्थ लोग अच्छी तरह नहीं समझते क्योंकि जिस्के लिये जो करना चाहिये वह करना इन्साफ़ है इसलिये इन्साफ़ मैं सब नेकियें आगईं इन्साफ़ का काम वह है जिस्मैं ईश्वर की तरफ़ का कर्तव्य, संसार की तरफ़ का कर्तव्य, और अपनी आत्मा की तरफ़ का कर्तव्य अच्छी तरह सम्पन्न होता हो. इन्साफ़ सब नेकियों की जड़ है और सब नेकियां उस्की शाखा प्रशाखा हैं इन्साफ़ की सहायता बिना कोई बात मध्यम भाव सै न होगी तो सरलता अविबेक, बहादरी दुराग्रह, परोपकार अन्समझी और उदारता फिजूलखर्ची हो जायँगीं.

कोई स्वार्थ रहित काम इन्साफ़ के साथ न किया जाय तो उस्की सूरत ही बदल जाती हैं और उस्का परिणाम बहुधा भयंकर होता है. सिवाय की रकम मैं सै अच्छे कामों मैं लगाए