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परीक्षागुरु.
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पीछै कुछ रुपया बचै और वो निर्दोष दिल्लगी की बातों मैं ख़र्च कियाजाय तो उस्को कोई अनुचित नहीं बता सक्ता परन्तु कर्तव्य कामों को अटका कर दिल्लगी की बातों मैं रुपया या समय ख़र्च करना कभी अच्छा नहीं हो सक्ता. अपनें बूते मूजब उचित रीति सै औरों की सहायता करनी मनुष्य का फ़र्ज़ है परन्तु इस्का यह अर्थ नहीं है कि अपनें मन की अनुचित इच्छाओं को पूरी करनें का उपाय करै अथवा ऐसी उदारता पर कमर बांधे कि आगै को अपना कर्तव्य संपादन करनें के लिये और किसी अच्छे काम मैं ख़र्च करनें के लिये अपनें पास फूटी कौड़ी न बचे बल्कि सिवाय मैं क़र्ज़ होजाय.

अफ़सोस! लाला मदनमोहन की इस्समय ऐसी ही दशा हो रही है. इन्पर चारों तरफ़ सै आफत के बादल उमड़े चले आते हैं परन्तु इन्हें कुछ ख़बर नहीं है बिदुरजी नें सच कहा हैं:—"बुद्धिभ्रंशते लहत बिनासहि॥ ताहि अनीति नीतिसी भासहि॥+[१]"

इस तरह सै अनेक प्रकार के सोच बिचार मैं डूबे हुए लाला ब्रजकिशोर अपनें मकान पर पहुंचे परन्तु उन्के चित्त को किसी बात सै ज़रा भी धैर्य न हुआ.

लाला ब्रजकिशोर कठिन सै कठिन समय मैं अपनें मन को स्थिर रख सक्ते थे परंतु इस्समय उन्का चित्त ठिकानें न था उन्नें यह काम अच्छा किया कि बुरा किया? इस बात का निश्चय वह आप नहीं कर सक्ते थे वह कहते थे कि इस दशा मैं मदनमोहन का काम बहुत दिन नहीं चलेगा और उस्समय ये सब


  1. + बुद्धौ कलुषभूतावां बिनाशे प्रत्युपस्थिते॥
    अनयो नयसंकाशी हृदयान्नापसर्पति॥