पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१५७

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कृतज्ञता.
 

कि "ताकों त्यों समझाइये जो समझे जिहिं बानि॥ बेन कहत मग अन्धकों अरु बहरेको पानि॥" जिस तरह सुग्रीव भोग बिलास में फंस गया तब रघुनाथजी केवल उस्को धमकी देकर राह पर ले आए थे इस तरह लाला मदनमोहन के लिये क्या कोई उपाय नहीं होसक्ता? हे जगदीश! इस कठिन काम मैं तूं मेरी सहायता कर.

लाला ब्रजकिशोर इन्बातों के विचार मैं ऐसे डूबे हुए थे कि उन्को अपना देहानुसन्धान न था. एक बार वह सहसा कलम उठा कर कुछ लिखनें लगे ओर किसी जगह को पूरा महसूल देकर एक ज़रूरी तार तत्काल भेज दिया. परन्तु फिर उन्हीं बातों के सोच विचार मैं मग्न होगए. इस्समय उन्के मुखसै अनायास कोई, कोई शब्द बेजोड़ निकल जाते थे जिन्का अर्थ कुछ समझ मैं नहीं आता था. एक बार उन्नें कहा "तुलसीदासजी सच कहते हैं "षट्‌रस बहु प्रकार ब्यंजन कोउ दिन अरु रैन बखानें॥ बिन बोले सन्तोष जनित सुख खाय सोई पै जानें॥" थोड़ी देर पीछे कहा "मुझको इस्समय इस वचन पर बरताव रखना पड़ेगा (वृन्द) झूंटहु ऐसो बोलिये सांच बराबर होय॥ जो अंगुरी सों भीत पर चन्द्र दिखावे कोए॥" परन्तु पानी जैसा दूध सै मिल जाता है तेल से नहीं मिलता. विक्रमोर्वशी नाटक मैं उर्वशी के मुख सै सञ्ची प्रीति के कारण पुरुषोत्तम की जगह पुरूरवा का नाम निकल गया था इसी तरह मेरे मुख से कुछका कुछ निकल गया तो क्या होगा? थोड़ी देर पीछे कहा "लोक निन्दा सै डरना तो वृथा है जब वह लोग जगत जननी जनक नन्दिनी की झूंटी निन्दा किये बिना नहीं रहे! श्रीकृष्णचन्द्र कोजाति वालों के अपवाद