पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१५८

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परीक्षागुरु.
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का उपाय नारदजी से पूछना पड़ा! तो हम जैसे तुच्छ मनुष्यों की क्या गिन्ती है? सादीनें लिखा है "एक बिद्वान से पूछा गया था कि कोई मनुष्य ऐसा होगा जो किसी रूपवान सुन्दरी के साथ एकांत मैं बैठा हो दरवाज़ा बन्द हो, पहरे वाला सोता हो मन ललचा रहा हो काम प्रबल हो + + और वह अपनें शम दम के बल सै निर्दोष बच सकै?" उसनें कहा कि "हां वह रूपवान सुन्दरी से बच सक्ता है परन्तु निन्दकों की निन्दासै नहीं बच सक्ता" फिर लोक निन्दा के भय सै अपना कर्तव्य न करना बड़ी भूल है धर्म्म औरों के लिये नहीं अपनें लिये और अपनें लिये भी फल की इच्छा से नहीं, अपना कर्तव्य पूरा करनें के लिये करना चाहिये परन्तु धर्म्म अधर्म्म होजाय, नेकी करते बुराई पल्ले पड़े, औरों को निकालती बार आप गोता खाने लगें तो कैसा हो? रुपेका लालच बड़ा प्रवल है और निर्धनोंको तो उन्के काम निकालनें की चाबी होने के कारण बहुत ही ललचाता है" थोड़ी देर पीछे कहा "हलधरदास नें कहा है "बिन काले मुख नहिं पलाश को अरुणाई है॥ बिन बूड़े न समुद्र काहु मुक्ता पाई है। इसी तरह गोल्ड स्मिथ कहता है कि "साहस किये विना अलभ्य वस्तु हाथ नहीं लग सक्ती" इसलिये ऐसे साहसी कामों मैं अपनी नीयत अच्छी रखनी चाहिये यदि अपनी नीयत अच्छी होगी तो ईश्वर अवश्य सहायता करैगा और डूब भी जाँयगे तो अपनी स्वरूप हानि न होगी."