पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परीक्षागुरु.
१५२
 

उदार और दयालु बताते हैं परन्तु वह कैसा कठोर चित्त है कि अपनें गुलाब जैसे कोमल, और गंगाजल जैसे निर्मल वालकों के साथ विश्वासघात करके उन्को जन्म भर के लिये दरिद्री बनाए देता है वह नहीं जान्ता कि एक हकदार का हक़ छीन कर मुफ्तख़ोरों को लुटा देने में कितना पाप है! कहो अब तुम्हारे वास्तै क्या मंगवायें?"

"खिनोंने" (खिलौनें) छोटे नें कहा "बप्फी" (बर्फ़ी) बड़े बोले और दोनों ब्रजकिशोर की मूंछें पकड़ कर खेंचनें लगे. ब्रजकिशोर नें बड़े प्यार सै उन्के गुलाबी गालों पर एक, एक मीठी चूमी लेली और नौकरों को आवाज़ देकर खिलौनें और बरफी लानें का हुक्म दिया.

"जी! इन्की मानें ये बच्चे आप के पास भेजे हैं" बुढ़िया बोली "और कह दिया है कि इन्को आप के पांओं मैं डाल कर कह देना कि मुझ को आप के क्रोधित होकर चले जानें का हाल सुन्कर बड़ी चिन्ता हो रही है मुझ को अपनें दुःख सुख का कुछ विचार नहीं मैं तो उन्के साथ रहनें मैं सब तरह प्रसन्न हूं परंतु इन छोट, छोटे बच्चों की क्या दशा होगी? इन्को बिद्या कौन पढ़ायगा? नीति कौन सिखायगा? इन्की उमर कैसे कटेगी? मैं नहीं जान्ती कि आप को इस कठिन समय मैं अपना मन मार कर उन्की बुद्धि सुधारनी चाहिये थी अथवा उन्को अधर धार मैं लटका कर चले जाना चाहिये था? ख़ैर! आप उन्पर नहीं तो अपनें कर्तव्य पर दृष्टि करें, अपनें कर्तव्य पर नहीं तो इन छोटे, बच्चों पर दया करें ये अपनी रक्षा आप नहीं कर सक्ते इन्का बोझ आपके सिर है आप इन्की ख़बर न लेंगे तो संसार