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परीक्षागुरु.
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स्वाभाविक रुचिको उत्तेजन दिया जाता है परंतु उन्के मनपर किसी तरह का बोझ नहीं डाला जाता उन्के निर्दोष खेलकूद और हंसनें बोलनें की स्वतन्त्रता मैं किसी तरहकी बाधा नहीं होनें पाती.

मदनमोहन की स्त्री अपनें पतिको किसी समय मौकेसै नेक सलाह भी देती है परन्तु बडोंकी तरह दबाकर नहीं; बराबर वालों की तरह झगड़ कर नहीं, छोटों की तरह अपनें पतीकी पदवीका विचार करके, उन्के चित्त दुःखित होनें का विचार करके, अपनी अज्ञानता प्रगट करके, स्त्रिओंकी ओछी समझ जता कर धीरजसै अपना भाव प्रगट करती है परन्तु कभी लोटकर जवाब नहीं देती, विवाद नहीं करती. वह बुद्धिमती चुन्नीलाल और शिंभूदयाल इत्यादि की स्वार्थपरतासै अच्छी तरह भेदी है परन्तु पतिकी ताबेदारी करना अपना कर्तव्य समझ कर समयकी वाट देख रही है और ब्रजकिशोर को मदनमोहनका सच्चा शुभचिंतक जान्कर केवल उसी सै मदनमोहनकी भलाईकी आशा रखती है. वह कभी ब्रजकिशोर सै सन्मुख होकर नहीं मिली परन्तु उस्को धर्म्मका भाई मान्ती है और केवल अपनें पतिकी भलाईके लिये जो कुछ नया वृतान्त कहलानें के लायक़ मालूम होता है वह गुपचुप उस्सै कहला भेजती है. ब्रजकिशोर भी उस्को धर्म की बहन समझता है इस कारण आज ब्रजकिशोरके अनायास क्रोध करके चले जानें पर उसनें मदनमोहनके हक़मैं ब्रजकिशोरकी दया उत्पन्न करनें के लिये इस्समय अपने नन्हें बच्चोंको टहलनीके साथ ब्रजकिशोरके पास भेज दिया था परन्तु वह लोटकर आए जितनें अपनी ही मेरठ जाने की तैयारी होगई और रातों रात वहां जाना पड़ा.