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परीक्षागुरु.
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काम बनें जिस्मैं मैं अपने मन की उमंग निकाल सकूं मनुष्य को जलन उस मौके़ पर हुआ करती है जब वह आप उस लायक न हो परन्तु तुम को जो बडाई बड़े परिश्रम सै मिली है वह ईश्वर की कृपा सै मुझ को बेमहनत मिल रही है फिर मुझ को जलन क्यों हो? तुम्हारी तरह खुशामद कर के मदनमोहन सै मेल किया चाहता तो मैं सहज मैं करलेता परन्तु मैंने आप यह चाल पसंद न की तो अपनी इच्छा सै छोड़ी हुई बातों के लिये मुझ को जलन क्यों हो? जलन की वृत्ति परमेश्वर नें मनुष्य को इसलिये दी है कि वह अपनें सै ऊंची पदवी के लोगों को देखकर उचित रीति से अपनी उन्नति का उद्योग करे परन्तु जो लोग जलन के मारे औरों का नुक्सान कर के उन्हें अपनी बराबर का बनाया चाहते है वह मनुष्य के नाम को धब्बा लगाते हैं. मुझ को तुम सै केवल यह शिकायत थी और इसी विषय मैं तुम्हारे विपरीत चर्चा करनी पड़ी थी कि तुमनें मदनमोहन सै मित्रता कर के मित्र के करनें का काम न किया तुम को मदनमोहन के सुधारनें का उपाय करना चाहिये था परन्तु मैंने तुम्हारे बिगाड की कोई बात नहीं की. हां इस वहम का क्या ठिकाना है? खाते, पीते, बैठते, उठते, बिना जानें ऐसी सैंकड़ों बातें बन जाती हैं कि जिन्का विचार किया करें तो एक दिन मैं बाबले बन जायँ. आए तो आए क्यों, गए तो गए क्यों, बैठे तों बैठे क्यों हँसे तो हँसे क्यों, फलाने से क्या बात की फ़लाने सै क्यों मिले? ऐसी निरर्थक बातों का विचार किया करें तो एक दिन काम न चले. छुटभैये सैकडों बातें बीच की बीच मैं बनाकर नित्य लड़ाई करा दिया करें पर नहीं अपनें मन को