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पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१८३

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हाथसै पैदा करनें वाले
और पोतड़ों के अमीर.
 

को झाड़ पोंछकर स्वच्छ रखता था परन्तु झाड़फ़नूस आदि को फ़िजूलखर्ची मैं समझता था उस्के हां मकान और दुकानपर बहुत थोड़े आदमी नोकर थे परन्तु हरेक मनुष्य का काम बट रहा था इसलिये बड़ी सुगमता सै सब काम अपनें अपनें समय पर होता चला जाता था. वह अपनें धर्म्म पर दृढ था ईश्वर मैं बड़ी भक्ति रखता था. प्रतिदिन प्रातःकाल घंटा डेढ़ घंटा कथा सुन्ता था और दरिद्री, दुखिया, अपाहजों की सहायता करनें मैं बड़ी अभिरुचि रखता था परन्तु वह अपनी उदारता किसी को प्रगट नहीं होनें देता था. वह अपनें काम धंदे मैं लगा रहता था इसलिये हाकिमों और रहीसों सै मिलनें का उसे समय नहीं मिल सक्ता था परन्तु वह वाजबी राह सै चल्ता था इसलिये उसै बहुधा उन्सै मिलनें की कुछ आवश्यकता भी न थी क्योंकि देशोन्नतिका भार पुरानी रूढी के अनुसार केवल राजपुरुषों पर समझा जाता था. वह महन्ती था इसलिये तन्दुरुस्त था वह अपनें काम का बोझ हरगिज़ औरों के सिर नहीं डालता था; हां यथाशक्ति वाजबी बातों मैं औरों की सहायता करनें को तैयार रहता था.

परन्तु अब समय बदल गया इस्समय मदनमोहन के विचार और ही होरहे हैं, जहां देखो; अमीरी ठाठ, अमीरी कारख़ानें बाग़की सजावट का कुछ हाल हम पहले लिख चुके हैं मकान मैं कुछ उस्सै अधिक चमत्कार दिखाई देता है, बैठक का मकान अंग्रेज़ी चालका बनवाया गया है उस्मैं बहुमूल्य शीशे बरतन के सिवाय तरह, तरह का उम्दा सै उम्दा सामान मिसल सै लगा हुआ है. सहन इत्यादि मैं चीनीकी ईटोंका सुशोभित फ़र्श कश्मीर