"आपको रामप्रसाद बनारसीदस के सिवाय किसी और का रुपया तों नहीं देना!” मुन्शी चुन्नीलाल ने पूछा.
"रामप्रसाद बनारसीदास की डिग्री का रुपया चुके पीछे
मुझको लाला साहब के सिवाय किसी की फूटी कौड़ी नहीं देनी होगी" मिस्टर रसल ने जवाब दिया.
परन्तु कांच का कारखाना बनाने के लिये रुपये कहां से
आयेंगे? और लाला मदनमोहन के कर्जे लायक नील के कार
ख़ाने की हैसियत कहां है? इन्सालवन्ट होने से लेनदारों के
पल्ले चार आने भी न पड़ेंगे यह बात मिस्टर रसल अपने मुंह
से अभी कह चुका है पर यहां इन बातों की याद कौन दिलावे?
"इस सूरत में रामप्रसाद बनारसीदास की डिग्री का रुपया न दिया जायगा तो उनकी डिग्री में इसका कारखाना बिक जायेगा और अपनी रकम वसूल होने की कोई सूरत न रहेगी” मुंशी
चुन्नीलाल ने लाला मदनमोहन के कान में झुक कर कहा.
"परंतु इस समय इसको देने के लिये अपने पास नकद
रुपया कहां है?” लाला मदनमोहन ने धीरे से जवाब दिया.
अब मेरी शर्म आप को है 'वक्त निकल जाता है बात रह
जाती है’ जो आप इस समय मुझको सहारा देकर उभार लोगे मैं तो आपका अहसान जन्म भर नहीं भूलूँगा” मिस्टर रसल ने गिड़गिड़ा कर कहा.
"मैं मन से तुम्हारी सहायता किया चाहता हूं परन्तु मेरा
रुपया इस समय और कामो में लग रहा है इससे मैं कुछ नहीं कर सकता" लाला मदनमोहन ने शर्माते-शर्माते कहा.
“अजी हुजूर! आप यह क्या कहते हैं? आपके वास्ते रुपये