पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२१०

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परीक्षागुरु.
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कमल गंध वाही गलिन धूर उड़ावत ब्यार॥[१]* "जो लोग असली बात निश्चय किये बिना केवल अफ़वाके भरोसे किसी के लिये मत बांध लेते हैं वह उस्के हक़ मैं बडी बेइन्साफ़ी करते हैं, अफ़वा के कारण अबतक हमारे देशको बहुत कुछ नुक्सान हो चुका है नादिरशाहसै हारमान्कर मुहम्मदशाह उसै दिल्ली मैं लिवा लाया तब नगर निवासियोंनें यह झूंटी अफ़वा उड़ा दी की नादिरशाह मरगया. नादिरशाह नें इस झूंटी अफ़वा को रोक नें के लिये बहुत उपाय किये परन्तु अफ़वा फैले पीछे कब रुकसक्ती थी! लाचार होकर नादिरशाहनें बिज़न बोल दिया. दोपहरके भीतर भीतर लाख मनुष्यों सै अधिक मारे गए! तथापि हिन्दुस्थानियों की आंख न खुली.

"हिन्दुस्थानियों को आज कल हर बात मैं अंग्रेजों की नक़ल करनें का चस्का पड रहा है तो वह भोजन बस्त्रादि निरर्थक बातों की नक़ल करनें के बदले उन्के सच्चे सद्गुणों की नक़ल क्यों नहीं करते? देशोपकार, कारीगरी और ब्यापारादि मैं उन्की सी उन्नति क्यों नहीं करते? अपना स्वभाव स्थिर रखनें मैं उन्का दृष्टांत क्यों नहीं लेते? अंग्रेजों की बात चीत मैं किसी की निजकी बातों का चर्चा करना अत्यंत दूषित समझा जाता है. किसीकी तन्ख्वाह या किसी की आमदनी, किसी का अधिकार या किसी का रोज़गार, किसी की सन्तान या किसी के घर का बृतान्त पूछनें मैं, पूछा होय तो कहने मैं कहा होय तो सुन्नें मैं वह लोग आनाकानी करते हैं और किसी समय तो किसी का


    • सुजनाना मपित्हृदयं पिशुनपरिषवंगलिप्त मिह भवति।

    पवनः परागवाही रथ्यासुवहन् रजखलो भवति॥