पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२१४

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परीक्षागुरु.
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बंगाल के सूबेदार सिराजुद्दौला सै अधिकार छीन्नें के लिये उस्के बखशी मीर जाफ़र और दीवान राय दुल्लभ आदि नें कंपनी को दक्षिण काल्पी तक की जमीदारी एक किरोड़ रुपया नक़द और कलकत्ते के अंग्रेजों को पचास लाख, फ़ौज को पचास लाख और और लोगों को चालीस लाख अनुमान देनें किये. जब मीर जाफ़र सूबेदार हुआ तब उस्सै अधिकार छीन्नें के लिये उस्के जँवाई क़ासम अलीखां नें कंपनी को बर्दवान मेदनीपुर, चट गांव के ज़िले, पांच लाख रुपे नक़्‌द, और कौन्सिल वालों को बीस लाख रुपे देनें किये. जब क़ासम अलीखां सूबेदार होगया और महसूल बाबत उस्का कंपनी सै बिगाड हुआ तब मीर जाफर नें कंपनी को तीस लाख रुपे नक़्‌द और बारह हज़ार सवार और बारह हजार पैदलों का खर्च देकर फिर अपना अधिकार जमा लिया. उधर अवध का सूबेदार शुजाउद्दौला कंपनी को चालीस लाख रुपे नक़्‌द और लड़ाई का खर्च देना करके उस्की फ़ौज रुहेलों पर चढा लेगया. दखन मैं बालाजी राव पेशवा के मरते ही पेशवाओं के घरानें मैं फूट पडी दो थोक होगए. अब तक पंजाब बच रहा था रणजीतसिंह की उन्नत्ति होती जाती थी परन्तु रणजीतसिंह के मरते ही वहां फूटनें ऐसे पांव फैलाए कि पहले सब झगड़ों को मात कर दिया. राजा ध्यानसिंह मन्त्री और उस्के बेटे हीरासिंह आदि की स्वार्थपरता, लहनासिंह और अजीतसिंह सिंधां वालों का छल अर्थात् कुंवर शेरसिंह और राजा ध्यानसिंहके जी मैं एक दूसरे, की तरफ सै सन्देह डालकर बिरोध बढ़ाना, और अन्त में दोनों के प्राण लेना राजकुमार खड़गसिंह उस्का बेटा नोनिहालसिंह