पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२१५

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फूटका काला मुंह.
 

राजकुमार शेरसिंह उस्का बेटा प्रतापसिंह आदिकी अन्‌समझी सै आपस मैं वह कटमकटा हुई कि पांच बरस के भीतर भीतर उस्के बंश मैं सिवाय दिलीपसिंह नामी एक बालक के कोई न रहा और उस्का राज भी कंपनी के राज मैं मिलगया. किसी नें सच कहा है, "अल्पसार हू बहुत मिल करैं बड़ो सो जोर॥ जों गजको बंधन करे तृणकी निर्मित डोर॥" +[१] इसलिये मैं आपस की फूटको सर्वथा अच्छी नहीं समझता तुम मेरे पास सै गए थे इसलिये मुझ को तुह्मारे कामों पर विशेष दृष्टि रखनी पड़ती थी परन्तु तुम अपनें जीमैं कुछ और ही समझते रहे. चलो खैर! अब इन बातों की चर्चा करनें से क्या लाभ है"

"आप यह क्या कहते हैं? आप मेरे बड़े हैं मैं आप का बरताव और तरह कैसे समझ सका था?" चुन्नी लाल कहनें लगा "आप नें बचपन सै मेरा पालन किया, मुझ को पढ़ा लिखा कर आदमी बनाया इस्सै बढ़ कर कोई क्या उपकार करेगा? मैं अच्छी तरह जान्ता हूं कि आप नें मुझ सै जो कुछ भला बुरा कहा; मेरी भलाई के लिये कहा. क्या मैं इतना भी नहीं जान्ता कि दंगा करनें सै मां अपनें बालक को मारती है दूसरे सै कुछ नहीं कहती यदि आप को हमारे प्रतिपालन की चिन्ता मन सै न होती तो ऐसे कठिन समय मैं लाला हीरा लाल को घर सै बुला कर क्यों नौकर रखते?"

"भाई! अब तो तुम नें वही खुशामद की लच्छेदार बातैं छेड़ दीं" लाला ब्रजकिशोर ने हँस कर कहा.


  1. + वह्‌नामल्प साराणां समवायोहि दुर्जयः॥
    तृस्मै र्विधीयते रज्जुर्बध्यन्ते दन्तिनरतया॥

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