पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२१७

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फूटका काला मुंह.
 

ख्वाह के और कुछ नहीं लिया तो तुम्हारे पास आठ दस हज़ार रुपे कहां से आगए? मिस्टर ब्राइट इत्यादि सै तुम जो कमीशन लेते हो उस्का हाल मैं उन्के मुख से सुन चुका हूँ तुम्हारी और शिंभूदयाल की हिस्सा पत्ती का हाल मुझे अच्छी तरह मालूम है. हरकिशोर और निहालचन्द गली, गली तुम्हारी धूल उड़ाते फिरते हैं. मैं नहीं जान्ता कि जब इस्की चर्चा अदालत तक पहुंचेगी तो तुम्हारे लिये क्या परिणाम होगा? मैंनें केवल तुम सै सलाह करने के लिये यह चर्चा छेड़ी थी परन्तु तुम इस्के छिपानें मैं अपनी सब अकलमंदी ख़र्च करने लगे तो मुझको पूछनें सै क्या प्रयोजन है? जो कुछ होना होगा समय पर अपनें आप हो रहैगा"

"आप क्रोध न करैं मैंने हर काम मैं आप को अपना मालिक और प्रतिपालक समझ रक्खा है मेरी भूल क्षमा करें और मुझको इस्समय सै अपना सच्चा सेवक समझते रहैं" मुन्शी चुन्नीलाल नें कुछ, कुछ डरकर कहा "आप जान्ते हैं कि कुन्बे का बड़ा ख़र्च है इस्के वास्तै मनुष्य को हज़ार तरह के झूंट सच बोलनें पड़ते हैं (वृन्द) "उदर भरन के कारनें प्राणी करत इलाज॥ नाचे, बांचे, रणभिरे, राचे काज अकाज॥"

"संसार की यही रीति है. प्रसंग रत्नावली मैं लिखा है "ज्ञान बृद्ध तपबृद्ध अरु बयके बृद्ध सुजान॥ धनवानन के द्वार को सेवैं भृत्य समान॥+[१]" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे "तुमको मेरी एकाएक राय पलटनेंका आश्चर्य होगा परन्तु आश्चर्य न करो. जिस


  1. + वयोवृद्धास्तपोवृद्धा ज्ञानवृद्धा स्तथापरे॥
    तेसर्वे धनवृद्धस्य हारि तिष्टंति किंकराः