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परीक्षा गुरु
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की क्या कमी है? आप कहें जितना रुपया इसी समय हाजिर हो" मास्टर शिंभूदयाल बोले.


"अच्छा! मुझसे हो सकेगा जिस तरह दस हज़ार रुपये का बंदोबस्त करके मैं कल तक आपके पास भेज दूँगा आप किसी तरह की चिन्ता न करें" लाला मदनमोहन ने कहा.


"आपने बड़ी मेंहरबानी की मैं आपकी इनायत से जी गया. अब मैं आपके भरोसे बिल्कुल निश्चिन्त रहूंगा” मिस्टर रसल ने जाते-जाते बड़ी खुशी से हाथ मिला कर कहा. और मिस्टर रसल के जाते ही लाला मदनमोहन भी भोजन करने चले गए.

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प्रकरण ३.

संगति का फल

सहबासी बस होत नृप गुण कुल रीति विहाय
नृप युवती अरु तरुलता मिलत प्राय संग पाय

हितोपदेश

लाला मदनमोहन भोजन करके आए उस समय सब मुसाहब कमरे में मौजूद थे. मदनमोहन कुर्सी पर बैठ कर पान खाने लगे और इन लोगों ने अपनी-अपनी बात छेड़ी.


हरगोविंद(पन्सारी के लड़के) ने अपनी बग़ल से लखनऊ की बनी हुई टोपियाँ निकाल कर कहा "हुजूर ये टोपियाँ अभी


आसन्नमेंव नृपतिर्भजते मनुष्यम् विद्याविहीन मकुलीन मसंगतं वा
प्रायेण  भूमिपतय:प्रमुख लताश्च, य:पार्श्व तो वसति तं परिवेष्टयन्ति!!