पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२२३

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बात चीत.
 


"निस्सन्देह नहीं आसक्ता परन्तु जहां तक हो सके उस्का बदला देना चाहिये" मुन्शी चुन्नीलाल कहनें लगा "कहते हैं कि महाराज दशरथ नें धोके सै श्रवण के तीर मारा परन्तु अपनी भूल जान्ते ही बडे पस्तावे के साथ उस्सै अपना अपराध क्षमा कराया उसै उठाकर उस्के माता पिता के पास पहुंचाया उन्को सब तरह धैर्य दिया और उन्का शाप प्रसन्नता सै अपने सिर चढा लिया"

ब्रजकिशोर की यह भूल हो या न हो परन्तु उस्नें पहले जो ढिटाई की है वह कुछ कम नहीं है. गई बला को फिर घर मैं बुलाना अच्छा नहीं मालूम होता जो कुछ हुआ सो हुआ चलो अब चुप हो रहो" मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.

"इस्समय ब्रजकिशोर सै मेल करना केवल उन्की प्रसन्नताके लिये नहीं है बल्कि उन्सै अदालत मैं बहुत काम निकलनें की उम्मेद की जाती है" मुन्शी चुन्नीलाल नें मदनमोहन को स्वार्थ दिखाकर कहा.

"कल तो तुमने मुझ सै कहा था कि उन्की विकालत अपनें लिये कुछ उपकारी नही हो सक्ती" मदनमोहन नें याद दिवाई.

यह बात सुन्कर चुन्नीलाल एकबार ठिठका परंतु फिर तत्काल सम्हल कर बोला "वह समय और था यह समय और है. मामूली मुकद्द़मौं का काम हम हरेक वकील सै ले सक्ते थे परन्तु इस्समय तो ब्रजकिशोर के सिवाय हम किसी को अपना विश्वासी नहीं बना सक्ते"

"यह तुम्हारी लायकी है परन्तु ब्रजकिशोर का दाव लगे तो