पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२२५

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बात चीत.
 

जंगली विचार है. इस्की निस्बत सादगी और मिलनसारी सै रहनें को लोग अधिक पसंद करते हैं. लाला ब्रजकिशोर कुछ ऐसे अप्रतिष्ठित नहीं हैं कि उन्के हां जानें सै लाला साहब की स्वरूप हानि हो"

"यह तो सच है परन्तु मैंने उन्का दुष्ट स्वभाव समझ कर इतनी बात कही थी" मास्टर शिंभूदयाल चुन्नीलाल का संकेत समझ कर बोले.

"ब्रजकिशोरके मकान पर जानें मैं मेरी कुछ हानि नहीं है परन्तु इतना ही विचार है कि मेलके बदले कहीं अधिक बिगाड़ न हो जाय" लाला मदनमोहनने कहा.

"जी नहीं, लाला ब्रजकिशोर ऐसे अनसमझ नहीं हैं मैं जानता हूं कि वह क्रोधसै आग हो रहे होंगे तो भी आपके पहुंचते ही पानी हो जायंगे क्योंकि गरमीमैं धूपके सताए मनुष्य को छाया अधिक प्यारी होती है" मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.

निदान सबकी सलाहसै मदनमोहनका ब्रजकिशोरके हां जाना ठैर गया चुन्नीलालनें पहलेसै ख़बर भेजदी, ब्रजकिशोर वह ख़बर सुन्कर आप आनें को तैयार होते थे इतनें मैं चुन्नीलाल के साथ लाला मदनमोहन वहां जा पहुंचे ब्रजकिशोर ने बड़ी उमंगसै इन्का आदर सत्कार किया.

इस छोटोसी बात सै मालूम हो सक्ता है कि लाला मदनमोहन की तबियत पर चुन्नीलाल का कितना अधिकार था.

"आपनें क्यों तकलीफ की? मैं तो आप आनें को था" लाला ब्रजकिशोर नें कहा.

"हरकिशोर के धोके मैं आज आप के नाम एक चिट्ठी