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परीक्षागुरु.
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तो सही हमनें ब्रजकिशोर के साथ कौन्सी भलाई की है जो वह हमारे साथ भलाई करैंगे? वकीलों के ढंग बड़े पेचीदा होते हैं वह एक मुकदमे मैं तुहारे वकील बनते हैं तो दूसरे मैं तुम्हारे बैरी के वकील बन जाते हैं परन्तु अपना मतलब किसी तरह नहीं जानें देते.”

"सच है इस काम मैं लाला ब्रजकिशोर की चाल पर अवश्य सन्देह होता है परन्तु क्या करें? अपनें वकील न करेंगे तो वह प्रतिपक्षी के वकील हो जायँगे और अपना भेद खोलनें मैं किसी तरह की कसर न रक्खेंगे” मुन्शी चुन्नीलाल कहनें लगा “असल तो यह है कि अब यहां रहने मैं कुछ मज़ा नहीं रहा प्रथम तो आगे को कोई बुर्द नहीं दिखाई देती फिर जिन लोगों सै हजारों रुपे खाए पीए हैं उन्हीं के सामनें होकर विवाद करना पड़ेगा और जब हम उन्सै बिबाद करेंगे तो वह हमसै मुलाहजा क्यों रक्खेंगे हमारा भेद क्यों छिपावेंगे? कभी, कभी हम उन्सै लाला साहब के हिसाब मैं लिखाकर बहुतसी चीज़ें घर लेगए हैं इसी तरह उन्के यहां जमा करानें के वास्तें लाला साहब सै जो रुपे लेगए थे वह उन्के यहां जमा नहीं कराए़ ऐसी रक़मों की बाबत पहले, पहले तो यह विचार था कि इस्समय अपना काम चला लें फिर जहांकी तहां पहुंचा देंगे परन्तु पीछे सै न तो अपनें पास रुपे की समाई हुई न कोई देखनें भालनें वाला मिला बस सब रक़में जहां की तहां रह गईं अब अदालत मैं यह भेद खुलेगा तो कैसी आफ़त आवेगी? और हम लाला साहब की तरफ़ सै बिवाद करेंगे तो यह भेद कैसे छिप सकेगा? क्या करें? कोई सीधा रस्ता नहीं दिखाई देता"