पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२३३

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नैराश्य (ना उम्मेदी).
 

यदि ऐसै ही पाप करके लोग बच जाया करते तो संसार मैं पाप पुण्यका विचार काहेको रहता?

“मुझको तो अब सीधा रस्ता यही दिखाई देता है कि जो हाथ लगे; ले लिवा कर यहां सै रफूचक्कर हो ब्रजकिशोर तुह्मारे भाग्य सै इस्समय आफसा है इस्के सिर मुफ्त का छप्पर रख कर अलग हो बैठो” मासृर शिंभूदयाल कहनें लगा “जिस तरह अलिफ़लैला में अबुलहसन और शम्सुल्निहार के परस्पर प्रेम बिबस हुए पीछे बखेड़ा उठनें की सूरत मालूम हुई तब उन्का मध्यस्थ इब्नतायर उन्को छिटकाकर अलग हो बैठा और एक जौहरी नें मुफ्त मैं वह आफ़त अपने सिर लेकर अपनें आप को जंजाल मैं फंसा दिया. इसी तरह इस्समय तुह्मारी और ब्रजकिशोर की दशा है. ब्रजकिशोर को काम सोंप कर तुम इस्समय अलग हो जाओ तो सब बदनामी का ठीकरा ब्रजकिशोर के सिर फूटेगा और दूध मलाई चखनें वाले तुम रहोगे!”

“यह तो बडे मज़े की बात है ब्रजकिशोर पर तो हम यह बोझ डालेंगे कि तुह्मारे लिये हम अलग होते हैं पीछे से हमारा भेद न खुलनें पाय लेनदारों सै यह कहेंगे कि तुह्मारे वास्ते लाला साहब सै हमारी तकरार होगई उन्होंनें हमारा कहा नहीं माना अब तुम भी कहीं हमको धोका न देना” मुन्शी चुन्नीलाल नें कहा.

“आज तो दोनों मैं बड़ी घूट, घूट कर बातें हो रही हैं” लाला मदनमोहन नें आतेही कहा. “तुह्मारी सलाह कभी पूरी नहीं होती न जानें कौन्से किले लेनें का विचार किया करते हो!”