परीक्षागुरु | २२४ |
जी हुजूर! कुछ नहीं, मिस्टर रसल के मामले की चर्चा थी उस्की जायदाद के नीलाम की तारीख मैं केवल दो दिन बाकी हैं परन्तु अब तक रुपे का कुछ बंदोबस्त नहीं हुआ“ मुन्शी चुन्नीलाल नें तत्काल बात पलट कर कहा.
“इस बिना बिचारी आफत का हाल किस्को मालूम था? तुम उन्हें लिख दो कि जिस तरह होसके थोडे दिन की मुहलत लेलें. हम उस्के भीतर, भीतर रुपे का प्रबन्ध अवश्य कर देंगे” लाला मदनमोहन नें कहा.
"मुहलत पहले कई बार लेचुके हैं इस्सै अब मिलनी कठिन है परन्तु इस्समय कुछ गहना गिरबी रख कर रुपे का प्रबन्ध कर दिया जाय तो उस्की जायदाद बनी रहै और धीरे, धीरे रुपया चुका कर गहना भी छुडा लिया जाय” मास्टर शिंभूदयाल नें जाते जाते सिप्पा लगानें की युक्ति की. उस्का मनोर्थ था कि यह रक़म हाथ लगजाय तो किसी लेनदार को देकर भली भांति लाभ उठायें. अथवा मदनमोहन मांगनें योग्य न रहै तो सबकी सब रक़म आप ही प्रआद कर जायें. अथवा किसी के यहां गिरवी भी धरें तो लेनदारों को कुर्की करानें के लिए उस्का पता बता कर उनसै भली भांति हाथ रंगें. अथवा माल अपनें नीचे दबे पीछे और किसी युक्ति सै भर पूर फायदे की सूरत निकालें. परन्तु मदनमोहन के सौभाग्य सै इस्समय लाला ब्रजकिशोर आ पहुंचे इस लिये उस्की कुछ दाल न गली.
“क्याहै? किस काम के लिये गहना चाहते हो?” लाला ब्रजकिशोर नें शिंभूदयाल की उछटतीसरी बात सुनी थी इस्पर आतेही पूछा.