पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२९
चालाक की चूक.
 

"आप बृथा खेद करते हैं. मैंने आप से छिप कर कोन्सा काम किया? आप के मेल सै मेरी अप्रसन्नता कैसे मालूम हुई? आप पहुंंचे जब निस्संदेह शिंभूदयालने मिसृर रसलके लिये गहनें की चर्चा छेड़ी थी परंतु वह कुछ पक्की बात न थी और आपकी सलाह बिना किसी तरह पूरी नहीं पड़ सक्ती थी आपसै पहले बात करनें का समय नहीं मिला था इसी लिये आपके सामने बात करनें मैं इतना संकोच हुआ था परंतु आपको हमारी तरफ़ सै अब तक इतना संदेह बन रहा है तो आप लाला साहब छोड़नें का विचार क्यों करते हैं आप के लिये हमहीं अपनी आवाजाई बन्द कर देंगे” मुन्शी चुन्नीलाल नें कहा.

सादो ने सच कहा है “वृद्धा वेश्या तपस्विनी न होय तो और क्या करे ? उतरा सेनक किसीका क्या बिगाड़कर सक्ता है कि साधु न बनें?" * लाला ब्रजकिशोर मुस्कराकर कहनें लगे "मैं किसी काम मैं किसी का उपकार नहीं सहा चाहता यदि कोई मुझपर थोड़ा सा उपकार करे तो मैं उस्से अधिक करनें की इच्छा रखता हूंं फिर मुझको इस थोथे काम मैं किसी का उपकार उठानें की क्या जरूरत है? जो तुम महरबानी करके मेरा पूरा महन्ताना मुझको दिवा दोगे तो मैं इसी मैं तुह्मारी बड़ी सहायता समझूँँगा और प्रसन्नता सै तुह्मारा कमीशन तुह्मारा नज़र करूंंगा” लाला ब्रजकिशोर इस बात चीत मैं ठ़ेठ सै अपनी सच्ची सावधानी के साथ एक दाव खेल रहे थे


* क़हबए पीर अज़ नावकारी चे कुनद कि तोवां नकुद? व शहनए माजूल अजू मर्दुम आजारी.