पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परीक्षा गुरु
१६
 


“तुम सरीखे छोकरे मदरसे में दो एक किताबें पढ़ कर अपने को अरस्तातालीस(Aristotle) समझने लगते हैं परन्तु हमारी विद्या ऐसी नहीं है तुम को परीक्षा करनी हो तो लो इस काग़ज़ पर अपने मन की बात लिख कर अपने पास रहने दो जो तुमनें लिखा होगा हम अपनी विद्या से बता देंगे” यह कह कर पंडितजी ने अपने अंगोछे में से काग़ज़ पेन्सिल और पुष्टीपत्र निकाल दिया.

मास्टर शिंभूदयाल नें उस काग़ज़ पर कुछ लिखकर अपने पास रख लिया और पंडितजी अपना पुष्टीपत्र लेकर थोड़ी देर कुडली खेंचते रहे फिर बोले "बच्चा तुमको हर बात में हंसी सूझती है तुमनें काग़ज़ में ‘करेला' लिखा है परन्तु ऐसी हंसी अच्छी नहीं"

लाला मदनमोहन के कहने से मास्टर शिंभूदयाल ने काग़ज़ खोल कर दिखाया तो हकीकत में 'करेला' लिखा पाया अब तो पंडितजी की खूब चढ़ बनी मूछों पर ताव दे,दे कर खखारने लगे

परतु पंडितजी ने ये 'करेला' कैसे बता दिया? लाला मदनमोहन के रोबरू आपस की मिलावट से बकरी का कुत्ता बना देना सहज-सी बात थी परंतु पंडित जी का चुन्नीलाल और शिंभूदयाल से ऐसा मेल न था और न पंडितजी को इतनी विद्या थी कि उसके बल से 'करेला' बता देते. असल बात यह थी कि पंडितजी ने एक काग़ज़ पर काजल लगा कर पुष्टीपत्र में रख छोड़ा था, जिस समय पुष्टीपत्र पर कागज़ रख कर कोई कुछ लिखता था कलम के दबाव से कागज के अक्षर दूसरे काग़ज़ पर