पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२४०

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परीक्षागुरू.
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उन्नें इस युक्ति सै बात चीत की थी जिस्सै उन्का कुछ स्वार्थ न मालूम पड़े और चुन्नी लाल आप सै आप मदनमोहन को छोड़ जानें के लिये तैयार हो जाय, पास रहनें मैं अपनी हानि, और छोड़ जानें मैं अपना फ़ायदा समझे बल्कि जाते, जाते अपनें फ़ायदे के लालच सै ब्रजकिशोर का महन्ताना भी दिखाता जाय.

“आप अपना महन्ताना भी लें और लाला मदनमोहन के यहां कुल अख्त्यार भी लें हमको तो हर भांति आपकी प्रसन्नता करनी है हमनें तो आपकी शरण ली है हमारा तो यही निवेदन है कि इस्समय आप हमारी इज्जत बचालें” मुन्शी चुन्नीलाल नें हार मान कर कहा. वह भीतर सै चाहे जैसा पापी था परंतु प्रगट मैं अपनी इज्जत खोनें सैं बहुत डरता था संसार मैं बडा भला मानस बना फिरता था और इसी भलमनसात के नीचे उस्नें अपनें सब पाप छिपा रक्खे थे.

“इन बातोंसै इज्जतकि क्या संबन्ध है! मुझसैं होसकेगा जहां तक मैं तुझारी इज्जतपर धब्बा न आनें दूंंगा परन्तु इस कठिन समय मैं तुम मदनमोहन के छोडनें का विचार करते हो इसमैं मुझको तुह्मारी भूल मालूम होती है ऐसा न होकि पीछै सै तुम्हें पछताना पड़े चारों तरफ दृष्टि रखकर बुद्धिमान मनुष्य काम किया करते हैं” लाला ब्रजकिशोर नें युक्तिसै कहा.

"तो क्या इस्समय आपकी राय मैं लाला मदनमोहनके पास सै हमारा अलग होना अनुचित है?” मुन्शी चुन्नीलाल ब्रजकिशोर पर बोझ डालकर पूछा.

“मैं साफ कुछ नहीं कह सक्ता क्योंकि औरों की निस्बत