पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४१
मित्रपरीक्षा.
 


लिये आप सवार हुए, पहलै रस्ते मैं जो लोग झुक, झुक कर सलाम करते थे वही आज इन्हैं देखकर मुख फेरनें लगे बल्कि कोई, कोई तो आवाज़ कसनें लगे. मदनमाह को सबसै अधिक विश्वास लाला हरदयाल का था इसलिये वह पहलै उसीके मकानपुर पहुँचे.

हरदयाल को मदनमोहनके काम बिगडनें का हाल पहले मालूम हो चुका था और इसी वास्तै उस्नें मदनमोहन की चिट्ठी का जबाब नहीं भेजा था. अब मदनमोहनके आनें का हाल सुन्ते ही वह जरासी देरमैं मदनमोहन के पास पहुँँचा और बड़े सत्कारसै मदनमोहनको लिवा लेजा कर अपनी बैठकमैं बिठाया.

लाला मदनमोहननें कल सहायता मांगने के लिये चिट्ठी भेजी थी उस्को पहलै उस्नें हंसीकी बात ठैराई और जवाब न भेजनें का भी यही कारण बतायां परन्तु जब मदनमोहननें वह बात सच्ची बताई और उस्के पीछे का सब वृत्तान्त कहा तो लाला हरदयाल अत्यन्त दुखित हुए और बड़ी उमंगसैं अपनी सब दौलत लाला मदनमोहन पर न्योछावर करनें लगे. लाला हर- दयाल की यह बातें केवल कहनें के लिये न थी वह दौड़कर अपनें गहनें का कलमदान उठा लाए और उसमें से एक, एक रकम निकाल कर लाला मदनमोहल को देनें लगे इतने मैं एका-एक दरवाजा खुला हरदयालका पिता भीतर पहुँँचा और वह हरदयाल को जवाहरातकी रकमें मदनमोहनके हाथमें देते देख कर क्रोध से लाल हो गया.

“अभागे हटधमीं! मैंने तुझक इतनी बार बरजा परन्तु तू अपना हट नहीं छोड़ता आजकल के कपूत लड़के इतनी बातको