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पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२६०

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परीक्षागुरु.
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यता करनें सै बिरानें अपनें होजाते हैं और अपनें काम में बिघ्न करनें से अपनें बिराने समझे जाते हैं परन्तु नहीं, क्रोध निर्बल पर विशेष आता है और नाउस्मेदी की हालत मैं उस्की कुछ हद नहीं रहती. मुन्शी चुन्नीलाल पर लाला मदनमोहन कितनी ही बार इस्सै बढ, बढ़ कर क्रोधित हुए थे परन्तु चुन्नोलाल को आज तक कभी गुस्सा नहीं आया? और आज लाला मदनमोहन उस्को ठंडा करते रहे तो भी वह क्रोध करके चल दिया वृन्दनें सच कहा है "बिन स्वारथ कैसे सह कोऊ करुए बैन। लात खाय पुचकारिए होय दुधारू धेन॥"

मुन्शी चुन्नीलाल के जानें सै लाला मदनमोहन का जी टूट गया परन्तु आज उन्को धैर्य देनें के लिये भी कोई उन्के पास न था उन्के यहां सैंकडों आदमियों का जमघट हर घडी बना रहता था सो आज चिडिया तक न फटकी. लाला मदनमोहन इसी सोच विचार मैं रात के नौ बजे तक बैठे रहे परन्तु कोई न आया तब निराश होकर पलंग पर जा लेटे.

अब लाला मदनमोहन का भय नोकरोंपर बिल्कुल नहीं रहा था सब लोग उन्के माल को मुफ्तका माल समझनें लगे थे किसी नें घडी हथियाई, किसी नें दुशालेपर हाथ फैंका चारों तरफ लूटीसी होने लगी. मोजे, गुलूबंद, रूमाल आदिकी तो पहलेही कुछ पूछ न थी. मदनमोहन को हर तरह की चीज खरीदनें की धत थी परन्तु खरीदे पोछे उस्को कुछ याद नहीं रहती थी और जहां सैकडों चीजें नित्य खरीदी जाँँय वहां याद क्या धूल रहै? चुन्नीलाल, शिंभूदयाल आदि कीमत मैं दुगुनें चौगनें कराते ही थे परन्तु यहां असल चीजोंही का पता न था. बहुधा चीजें उधार