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पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२६१

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हीनाप्रभा (बदरोवी).
 


आती थीं इस्सै उन्का जमा खर्च उससमय नहीं होता था और छोटी, छोटी चीजों के दाम तत्काल खर्च मैं लिख दिये जाते थे इस्सै उन्की किसी को याद नहीं रहती थी, सूची पत्र बनानें की वहां चाल न थी और चीज बस्त की झडती कभी नहीं मिलाई जाती थी नित्य प्रति की तुच्छ, तुच्छ बातोंपर कभी, कभी वहां बडा हल्ला होताथा परन्तु सब बातोंके समूह पर दृष्टि करके उचित रीतिसै प्रबन्ध करनें की युक्ति कभी नहीं सोची जाती थी और दैवयोगेन किसी नालायक सै कोई काम निकल आता था तो वह अच्छा समझ लिया जाता था परन्तु काम करनें की प्रणाली पर किसी की दृष्टि न थी. लाला साहब दो तीन वर्ष पहलै आगरे लखनऊ की सैरको गए थे वहां के रस्ते खर्च के हिसाब का जमा खर्च अबतक नहीं हुआ था और जब इस तरह कोई जमा खर्च हुए बिना बहुत दिन पडा रहता था तो अन्त मैं उस्का कुछ हिसाब किताब देखे बिना यों ही खर्च मैं रकम लिख कर खाता उठा दिया जाता था. कैसेही आवश्यक काम क्यों नही लाला साहब की रुचिके विपरीत होनें सै वह सब बेफायदे समझे जाते थे और इस ढब की वाजबी बात कहना गुस्ताखी मैं गिना जाता था. निकम्मे आदमियों के हरवक्त घेरे बैठे रहनें सै काम आदमियों को कामकी बात करनें का समय नहीं मिलता था, “जिस्की लाठी उस्की भैंस” हो रही थी जो चीज जिस्के हाथ लगती थी वह उस्को खुर्दबुर्द कर जाताथा भाडे और उघाई आदिकी भूली भुलाई रकमों को लोग ऊपर का ऊपर चट करजाते थे आधे परदे पर कज दारोंको उनकी दस्तावेज़ फेर दी जाती थी देशकाल के अनुसार उचित प्रबन्ध करनें मैं लोक निंदाका भय था! जो मनुष्य कृपा-