पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२७३

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धोखेकी टट्टी.
 

लगा गिन्ती के दिनोंमें तीन चार लाख पर पानी फिरगया. वलायत मैं डरमोडी नामी एक लड़का ऐसा तीक्षण बुद्धि हुआ था कि वह नो वर्ष की अवस्था मैं और विद्यार्थियों को ग्रीक और लाटिन भाषाके पाठ पढ़ाता था परन्तु आगे चलकर उस्का चाल चलन अच्छा नहीं रहा इसी तरही यहां प्रारंभ सै परिणाम बिपरीत हुआ. हिन्दुस्थानियों का सुधरना केवल दिखानें के लिये है वह अपनी रीति भांति बदलनें मैं सब सुसभ्यता समझते हैं परंतु असल मैं अपनें स्वभाव और विचारोंके सुधारनें का कुछ उद्योग नहीं करते बचपन मैं उन्की तबियत का कुछ, कुछ लगाव इस तरफ को मालूम होता भी है तो मदरसा छोड़े पीछे नाम को नहीं दिखाई देता. दरिद्रियों को भोजन वस्त्र की फिकर पड़ती है और धनवानों को भोग विलास सै अवकास नहीं मिलता फिर देशोन्नति का विचार कौन करे? बिद्या और कला की चर्चा कौन फैलाय? हमको अपनें देश की दीन दशा पर दृष्टि करके किसी धनवान का काम बिगड़ता देख कर बड़ा खेद होता है परन्तु देश के हित के लिये तो हम यही चाहते हैं कि इस्तरह पर प्रगट मैं नए सुधारे की झलक दिखा कर भीतर सै दीये तले अन्धेरा रखनें वालों का भंडा जल्दी फूट जाय जिस्सै और लोगों की आंखैं खुलें और लोग सिंहका चमड़ा ओढ़नें वाले भेड़िये को सिंह न समझैं" इस अख़बार के ऐडीटर को पहलै लाला मदनमोहन से अच्छा फ़ायदा हो चुका था परन्तु बहुत दिन बीत जानें सै मानों उस्का कुछ असर नहीं रहा जिस तरह हरेक चीज़ के पुरानें पड़नें सै उस्के बन्धन ढीले पड़ते जाते है इसी तरह ऐसे स्वार्थपर मनुष्यों के चित्त मैं किसी के उपकार पर, लेन देन पर,