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परीक्षागुरु.
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प्रीति व्यवहार पर, बहुत काल बीत जानें सै मानों उस्का असर कुछ नहीं रहता जब उन्के प्रयोजनका समय निकल जाता है तब उन्की आंखैं सहसा बदल जाती है जब वह किसी लायक होते हैं तब उन्के हृदय पर स्वेच्छाचार छा जाता है जब उन्के स्वार्थ मैं कुछ हानि होती है तब वह पहले के बड़े सैं बड़े उपकारों को ताक़ पर रख कर बैर लेनें के लिये तैयार हो जाते हैं सादी ने कहा है "करत खुशामद जो मनुष्य सो कछु दे बहु लेत। एक दिवस पावै न तो दो सै दूषण देत॥+[१]" इस अखबार का एडीटर विद्वान था और विद्या निस्सन्देह मनुष्य की बुद्धि को तीक्ष्ण करती है परन्तु स्वभाव नहीं बदल सक्ती. जिस मनुष्यको विद्या होती है पर वह उस्पर बरताव नहीं करता वह बिना फल के बृक्षकी तरह निकम्मा है.

लाला मदनमोहन इन लिखावटों को देख कर बड़ा आश्चर्य करते थे परन्तु इस्सै भी अधिक आश्चर्य की बात यह थी कि बहुत लोगोंनें कुछ भी जवाब नहीं भेजा उन्मैं कोई, कोई तो ऐसे थे कि बड़ों की लकीर पर फकीर बनें बैठे थे यद्यपि उन्के पास कुछ पूंजी नहीं रही थी उन्का कार व्योहार थक गया था उन्का हाल सब लोग जान्ते थे इस्सै आगे को भी कोई बुर्द हाथ लगनें की आशा न थी परन्तु फिर भी वह खर्च घटानें मैं बेइज्जती समझते थे. सन्तान को पढ़ाने लिखानें की कुछ चिन्ता न थी परन्तु ब्याह शादियों मैं अब तक उधार लेकर द्रब्य लुटाते थे उन्सै इस अवसर पर सहायता की क्या आशा थी? कितनें ही ऐसे.


  1. + अला ता नश्‌नवी दह सखुन गोए कि अन्दक मायः नफए अज़तो दारद॥
    अगर रोज़े मुरादश वर नयारी दोसद चन्दा अयूबत बर शुमारद॥