पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परीक्षागुरु.
२७०
 

का ग्राम्य देवता उस्की ओर कुछ क्रोध और दयाकी दृष्टिसै देख रहा है और यह कह रहा है कि "ले अधम पुरुष! तेरे लिये यह आज्ञा हुई है" यह कहकर उस ग्राम देवताने एक लिपटा हुआ काग़ज़ हेन्‌री की तरफ़ फेंक दिया और आप अन्तर्धान हो गया हेनरीने काग़ज़ खोलकर देखा तो उस्मैं ये शब्द लिखेथे कि "छः के पश्चात्" हेन्‌रीनें जगकर निश्चय समझा कि मैं छःपहर, छःदिन, छःअठवाड़े, छ:मास या छःवर्षमैं अवश्य मरजाऊंगा इस्सै हेन्‌री को अपने दुष्कर्मों का बड़ा पछतावा हुआ और छः महिने तक मृत्यु भयसै अत्यंत व्याकुल रहा परंतु फिर मृत्यु की अवधि छटे बर्ष समझकर समाधानी सै सत्कर्म करनें लगा अपनें कुकर्मों के लिये सच्चे मनसै ईश्वर की क्षमा चाही और उस्सै पीछे केवल सत्कर्म करके प्रजा की प्रीति प्रतिदिन बढ़ाता गया उस्की पहली चालसै वह कडुआ फल उस्को मिला था कि जिस्सै बेचैन होकर वह गुमराह हुआ जाता था उस्के बदले इस्समयके आनन्दके मिठास सै उस्का चित्त प्रफुल्लित रहनें लगा और जैसै, जैसै वह पहले के कडुआपनसै इस्समयके मिठासका मुकाबला करता गया वैसे वैसे उस्का आनन्द विशेष बढ़ता गया उस्के चित्तमैं कोई बात छिपानें के लायक नहीं रही इस्सै उस्के मन पर किसी तरह का बोझ न मालूम होता था लोगों के जीमैं उस्का विश्वास एक साथ बढ़ गया बडे, बड़े राजा उस्को अपना मध्यस्थ करनें लगे और छः वर्ष पीछे जब वो अपनें मरनें की घड़ी समझता था ईश्वर की कृपा सै उसी स्वप्न के कारण वह जर्मनी का राज करनें के लिये सबसै योग्य पुरुष समझा जाकर राज सिंहासन पर बैठाया गया!!!" इस