पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२८१

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बिपतमैं धैर्य.
 

लिये अब यह सूरत हो चुकी है तो लाला मदनमोहन के चित्तपर इस्का पुरा असर हो जाना चाहिये क्योंकि जो बात सौ बार समझानें से समझमें नहीं आती वह एक बार की परीक्षा सै भली भांति मनमैं बैठ जाती है और इसी वास्तै लोग "परीक्षा (को) 'गुरु' मान्ते हैं" बस इतनी बात समझमैं आते ही लाला ब्रजकिशोर मदनमोहन को धैर्य देनें के लिये उस्के पास हवालात मैं गए उस्का मुंह उतर गया था, आंसू डबडबा रहे थे, लज्जाके मारे आंख उंची नहीं होती थी.

"आप इतनें अधैर्य न हों इस बिना बिचारी आफ़त आनेंसै मुझको भी बहुत खेद हुआ परन्तु अब गई बीती बातोंके याद करनें सै कुछ फायदा नहीं मालूम होता लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे "हर बात के बन्ते बिगडते रहनें सै मालूम होता है कि सर्व शक्तिमान परमेश्वरको इच्छा संसार का नकशा एकसा बनाये रखनें की नहीं है देवताओं को भी दैत्योंसै दुःख उठाना पड़ता है, सूर्य चन्द्रमा को भी ग्रहण लगता है, महाराज रामचन्द्रजी और राजा नल, राजा हरिश्चन्द्र, राजा युधिष्ठिर आदि बड़े बड़े प्रतापियों को भी हद्दसै बढकर दुःख झेलनें पड़े हैं अभी तीन सौ साडे तीन सौ बर्ष पहलै दिल्ली के बादशाह महम्मद बाबर और हुमायूंनें कैसी, कैसी तक्लीफ़े उठाईं थीं कभी वह हिन्दुस्थान के बादशाह हो जाते थे कभी उन्के पास पानी पीने तकको लोटा नहीं रहता था और बलायतों मैं देखो फ्रान्स का सुयोग्य बादशाह चोथा हेन्‌री एक बार भूखों मरनें लगा तब उस्नें एक पादरी सै गवैयों मैं नौकर रखनें की प्रार्थना की परन्तु उस्के मन्द भाग्यसै वह भी नामंजूर हुई फ्रान्सके सातवें लूईने एक बार