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परीक्षागुरू.
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अधिक घायल करती है? मुझको इतना दु:ख उन कृतघ्न मित्रों की शत्रुता सै नहीं होता जितना तेरी लायकी और आधीनता सै होता है तू मुझको दुःखी करनें के लिये यहां क्यों आई? तैनें मेरे साथ ऐसी प्रीति क्यों की? मैंने तेरे साथ जैसी क्रूरता की थी वैसी ही तैनें भी मेरे साथ क्यों न की? मैं निस्संदेह तेरी इस प्रीति लायक नहीं हूं फिर तू ऐसी प्रीति करके क्यों मुझको दुखी करती है?” लाला मदनमोहन में बड़ी कठिनाई सै आंंसू रोककर कहा.

“प्यारे प्राणनाथ! मैं आप की हूं और अपनी चीज़ पर उस्के स्वामी को सब तरह का अधिकार होता है जिस्पर आप इतनी कृपा करते हैं यह तो बड़े ही सौभाग्य की बात है” वह स्त्री मदनमोहन की इतनी सी बात पर न्योछावर होकर बोली "महाभारत में एक कपोती नें एक बधिक के जाल मैं अपनें पतिके फसे पीछे उस्के मुख सै अपनी बड़ाई चुन्कर कहा था कि "आहा! हम मैं कोई गुण हो या नहो जब हमारे पति हम सै प्रसन्न होकर हमारी बड़ाई करते हैं तो हमारे बड भागिनी होने में क्या संदेह है? जिस स्त्री सै पति प्रसन्न नहीं रहते वह झुलसी हुई बेलके समान सदा मुर्झाई रहती है.

"तेरी ये ही तो बातें हृदय विदीर्ण करनेंवाली हैं मुझको क्षमा कर मेरे पिछले अपराधों को भूल जा. मैं जानता हूं कि मुझसै अबतक जितनी भूलें हुई हैं उन्मैं सब से अधिक भूल तेरे हक़ मैं हुई है मैं एक हीरा को कंकर सुमझा, एक बहुमूल्य हार को सर्प समझकर मैंने अपने पास सै दूर फैंक दिया, मेरी बुद्धिपर अज्ञानता का पर्दा छा गया परन्तु अब काम करूंं?