पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/३०१

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प्रेत भय.
 

अब तो पछताने के सिवाय मेरे हाथ और कुछ भी नहीं है" लाला मदनमोहन आंसू भरकर बोले.

"मुझको तो ऐसी कोई बात नहीं मालूम होती जिस्सै मेरे लेये आपको पछताना पड़े मैं आपकी दासी हूं फिर ऐसे सोचा बेचार करनें की क्या ज़रूरत है? और मैं आपकी मर्ज़ी नहीं रख सकी उस्मैं तो उल्टी मेरी ही भूल पाई जाती है" उस स्त्रीनें के कंठ से कहा.

"सच है सोनें की पहचान कसोटी लगाये बिना नहीं होती परन्तु तू यहां इस्समय कैसै आ सकी? किस्के साथ आई? कैसै पहरेवालों नें तुझे भीतर आनें दिया? यह तो समझाकर कह" लाला मदनमोहन नें फिर पूछा.

"मैं अपनी गाडी मैं अपनी दो टहलनियों के साथ यहां आई हूं और मुझको मेरे भाई के कारण यहां तक आने मैं कुछ परिश्रम नहीं हुआ मैं विशेष कुछ नहीं कह सक्ती वह आप आकर अभी आप सै सब वृत्तान्त कहैंगे" यह कहते, कहते वह स्त्री दरवाज़े के पास जाकर अन्तर्धान होगई!!!